महिला के अनेक रूपों में ममतामयी मां का जो रूप देखने को मिलता है, उस में पवित्रता का स्नेह छलकता है. अपने बच्चे के लिए मां कुछ भी कर सकती है. कभी बुरा समय आता है और कोई विषम परिस्थिति खड़ी होती है तो मां साक्षात रणचंडी बन कर किसी का भी संहार कर सकती है.
यह कहानी आंध्र प्रदेश की है. आंध्रप्रदेश के मध्य में आता है पल्नाडु जिला. तेलुगु इतिहास में सतवाहन राजाओं के साम्राज्य के पतन के समय पल्लव वंश के राजा ने यहां कृष्णा नदी की घाटी में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी, इसलिए इस क्षेत्र को पल्लवनाडु के रूप में जाना जाता है, जो आज बिगड़ते बिगड़ते पत्नाडु हो गया है. इस जिले का मुख्यालय नरसारावपेट है.
नरसारावपेट शहर की एसआरकेटी कालोनी में मध्यमवर्गीय लोग रहते हैं. 40 वर्षीया जान बी पठान भी इसी कालोनी में रहती थी. मेहनतमजदूरी करने वाली जान बी का गठा शरीर होने की वजह से वह 30 साल की ही लगती थी. जान बी के पति का नाम शब्बीर था. करीब 15 साल पहले एक दुर्घटना में उस की मौत हो गई थी.
पति की मौत के बाद हिम्मत हारने के बजाय जान बी ने मेहनत कर के अपने दोनों बेटों को अच्छी तरह पालापोसा. 17 साल के बड़े बेटे का नाम सुभान तो 16 साल के छोटे बेटे का नाम इलियास था. ये दोनों भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए मां के काम में मदद करने लगे थे.
Bu hikaye Satyakatha dergisinin September 2023 sayısından alınmıştır.
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