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टेलीपैथी दिल से दिल को राह क्यों होती है
Vanitha Hindi
|March 2025
दूर बैठे किसी के दिल की बात पढ़ लेने या सुन लेने को ही टेलीपैथी कहा जाता है। क्या यह विज्ञान है या भ्रम, इस बारे में बता रही हैं ज्योतिषाचार्य पूनम वेदी।
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सोमवार का दिन था, नीला अचानक अपनी कालेज के मित्र के बारे में सोचने लगती है। कई वर्षों से उससे बात नहीं हुई थी तथा उसे पता भी नहीं था कि वह कहां रहती है। अप्रत्याशित रूप से उसका पत्र मिलता है। नीला ने उसे फोन किया, जिसमें उसने बताया कि उसी सोमवार को जब नीला उसके बारे में सोच रही थी तो वह भी कॉलेज की पुरानी अलबम देख रही थी तथा नीला से संपर्क करने का सोच रही थी।
यही है टेलीपैथी
दो मस्तिष्क में सीधे-सीधे वार्तालाप के अनुभव के अनेक उदाहरण इतिहास में मिलते हैं, जिसे टेलीपैथी का नाम दिया गया। यह नाम ब्रिटिश स्कालर फ्रेडरिक डब्ल्यू एच मेयर ने दिया था। इसका अर्थ होता है— दूर से अनुभव करना। इसे परचित्त बोध/दूर संवेदन भी कहा जाता है।
इस विषय में सुविख्यात उपन्यासकार श्रीमती पर्ल बक ने अपना एक अनुभव वर्णित किया है—एक दिन सुबह 5 बजे उनकी नींद यकायक खुल गयी। उस समय वे जापान में टोक्यो के एक होटल में थीं। किसी अज्ञात भय से उन्हें घबराहट होने लगी। श्रीमती बक लिखती हैं, “मैं कुछ सुनने की प्रतीक्षा कर रही थी, क्योंकि मुझे पूरा विश्वास था कि कोई मुझसे कुछ कहने का प्रयत्न कर रहा है।” कोई पौने 6 बजे टेलीफोन की घंटी बजी। वे स्वतः ही जान गयीं कि क्या सूचना मिलेगी। टेलीफोन अमेरिका से उनकी बेटी का था। उसने बताया कि उसके पति का अभी-अभी देहावसान हो गया है।
टेलीपैथी के महाभारत, रामायण और बाइबल में अनेक उदाहरण मिलते हैं। महाभारत में संजय, धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र में लड़े जा रहे युद्ध का पूरा हाल इस तरह सुनाता है, मानो वह प्रत्यक्ष देख रहा हो। टेलीपैथी का ही एक अच्छा उदाहरण बाइबल में है। भविष्य ज्ञाता एलीशा के बारे में कहा गया है कि वह सीरिया के राजा के सैनिक भेद जानने के लिए 'परचित्त बोध शक्ति' का प्रयोग किया करता था।
क्या है परचित्त बोध
Bu hikaye Vanitha Hindi dergisinin March 2025 baskısından alınmıştır.
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