राष्ट्रीय संयोजक (आईफा), राष्ट्रीय प्रवक्ता, एमएसपी गारंटी कानून किसान मोरचा
कहा जाता है कि मुगलकाल में बादशाह जहांगीर ने लोगों को जल्दी से जल्दी इंसाफ देने के लिए किले के दरवाजे पर एक बड़ा सा घंटा लटकवाया था. इसे कोई भी फरियादी दिनरात कभी भी बजा कर सीधे मुल्क के बादशाह से अपनी शिकायत दर्ज कर इंसाफ हासिल कर सकता था. इसी जहांगीरी घंटे की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खूब तामझाम व प्रचारप्रसार के साथ पीएमओ पोर्टल शुरू किया.
सोशल मीडिया के इस प्लेटफार्म पर लोग अपनी जायज शिकायत सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंचा सकते थे और उन शिकायतों पर जल्दी कार्यवाही व निराकरण कर उन्हें राहत पहुंचाने का दावा किया गया था. कहा गया था कि इस पोर्टल पर देश का हर नागरिक अपनी सीधी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अपने उपयोगी सुझाव, योजनाएं सीधे अपने प्रधानमंत्री को भेज सकता है.
प्रधानमंत्री के इस पीएमओ पोर्टल का वास्तविक हश्र क्या हुआ, यह समझने के लिए हमें पहले इन की कार्यप्रणाली समझनी होगी. नरेंद्र मोदी के पिछले लगभग 10 सालों के कार्यकाल की हमें अगर एक वाक्य में व्याख्या करनी हो, तो इसे वादों, नारों, जुमलों और भव् आयोजनों की सरकार कहा जा सकता है.
नरेंद्र मोदी ने देश को भले ही कुछ और दिया हो या न दिया हो, लेकिन निश्चित रूप से इन्होंने कई लोकप्रिय नारे दिए हैं. इन्हीं नारों में इन का एक प्रमुख नारा था, 'सब का साथ, सब का विश्वास'. लेकिन सरकार और नरेंद्र मोदी साथ और विश्वास तो सब का चाहते हैं, परंतु किसी को भी, उस के योगदान के लिए श्रेय देना तो जैसे इन्होंने सीखा ही नहीं, बल्कि इस बात का ध्यान रखा जाता है कि हर काम और उपलब्धियों का श्रेय मोदी और केवल मोदी को ही जाना चाहिए. किसी भी उपलब्धि का श्रेय वे अपनी पार्टी यहां तक कि संबंधित विभाग के मंत्रियों के साथ भी बांटने को तैयार नहीं हैं.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin December First 2023 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.