जंगल में मोर नाचा
Aha Zindagi|August 2024
मेह के मेघ आसमान में गहराए नहीं कि केहूं-केहूं का स्वर उच्चारता मोर, इंद्र की हज़ार आंखें अपने पंखों में सजाए, रिमझिम की अगवानी में थिरकने लगता है। मयूर नृत्य की ऋतु में उसके अद्वितीय सौंदर्य और मनमोहक नर्तन का साक्षात कीजिए इन शब्दों में....
शिवचरण चौहान
जंगल में मोर नाचा

जंगल में मोर नाचा, किसने देखा ! मोर का नृत्य सुंदर विषय है, पर इस कहावत के हिसाब से जंगल में नाचते मोर की सुंदरता का क्या मोल जब उसे कोई देख ही नहीं पाया। अपनी कला के प्रदर्शन को लेकर बनी इस कहावत में भी कहीं न कहीं मोर के नृत्य की सराहना ही की जा रही है। नवगीतकार शंभूनाथ सिंह का एक गीत है : बगिया में नाचेगा मोर/देखेगा कौन? / तुम बिन ओ मेरे चितचोर / देखेगा कौन?

शायद कवि को यह नहीं मालूम कि मोर की सुंदरता किसी सराहना की मोहताज नहीं। मोर चाहे जंगल में नाचे या बाग़ में, उसकी सुंदरता और नृत्य को सराहने वाले असंख्य हैं।

श्याम का प्रिय और राम का भी...

राम वनवास का वर्णन है कि चित्रकूट में बादल छाए हुए हैं और बादलों की गर्जना सुनकर मोर नाच रहे हैं। राम नाचते हुए मोरों को देख प्रसन्न होकर अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहते हैं....

लछिमन देखु मोरगन नाचत बारिद पेखि ।

गृही बिरति रत हरष जस बिष्नुभगत कहुं देखि ॥

राम हों, चाहे वृंदावन में गैया चराते कृष्ण, मोर को नाचते हुए देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं। श्रीकृष्ण के तो शीश पर सुशोभित होता है मोरपंख । वे द्वारकाधीश बनकर भी अपने स्वर्ण मुकुट पर मोरपंख को स्थान देते हैं। उनका वर्णन 'मोर-मुकुटधारी' कहे बिना अपूर्ण है। उदाहरण में कवि की पंक्तियां हैं-

सीस-मुकुट कटिकाछनी उर वैजयंती माल।

इहिं बानक मो मन बसो सदा बिहारीलाल ॥

रसखान भी गाते हैं-

Bu hikaye Aha Zindagi dergisinin August 2024 sayısından alınmıştır.

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पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
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सदियों के शहर में आठ पहर

क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!

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भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....

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November 2024
एक वीगन का खानपान
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एक वीगन का खानपान

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November 2024
सदा दिवाली आपकी...
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सदा दिवाली आपकी...

दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।

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November 2024
'मां' की गोद भी मिले
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'मां' की गोद भी मिले

बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।

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November 2024