आदत में न जाने क्या बात है कि जो इसके चंगुल फंसता है वह इससे बाहर नहीं निकल पाता। वह मन को पकड़ लेती है जोंक की भांति। मनुष्य जैसा बुद्धिमान प्राणी भी कहता है- आदत से लाचार हूं। कैसी है यह लाचारी? कहते हैं, आदतें दूसरा स्वभाव होता है इसलिए उन्हें बदलना मुश्किल होता है। बड़े-बड़े लोग इनके जाल से उबर नहीं पाए। आइए, इस महाठगिनी आदत का अवलोकन करते थोड़ी मन की बनावट देखें तो इसे समझ पाएंगे।
आख़िर आदत बनती कैसे है?
मन एक यंत्र है, ठीक कंप्यूटर जैसा। कंप्यूटर में एक बार डेटा डाल दिया जाए तो वह उसका अभिन्न अंग हो जाता है। मस्तिष्क के जो केंद्र यानी न्यूरो सेंटर्स हैं वे भी बायो कंप्यूटर हैं। कई केंद्र हैं जो मनुष्य के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं। आदतों और भावनाओं का नियंत्रण करने का एक केंद्र है जो मस्तिष्क के बीचोंबीच है, उसका नाम है बेसल गैंगलिया। इस केंद्र का काम है भावनाओं को नियोजित करना, स्मृतियों को संजोना और आदतों को सम्हालना। जब हम कहते हैं कि हम आदत के अधीन हैं तो वस्तुतः हम अपने मस्तिष्क की तंत्रिकाओं के अधीन होते हैं।
Bu hikaye Aha Zindagi dergisinin October 2024 sayısından alınmıştır.
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अन्न उपजाए अंग भी उगाए
बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।
इसे पढ़ने का फ़ैसला करें
...और जीवन में ग़लत निर्णयों से बचने की प्रक्रिया सीखें। यह आपके हित में एक अच्छा निर्णय होगा, क्योंकि अच्छे फ़ैसले लेने की क्षमता ही सुखी, सफल और तनावरहित जीवन का आधार बनती है। इसके लिए जानिए कि दुविधा, अनिर्णय और ख़राब फ़ैसलों से कैसे बचा जाए...
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लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।
चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
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क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!
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दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।
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बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।