फ़ैसला.... दिन की शुरुआत के साथ ही इसकी भी शुरुआत हो जाती है। क्या मुझे 10 मिनट के लिए स्नूज बटन दबाना चाहिए या अभी उठ जाना चाहिए? क्या मुझे ऑफ़िस जाने से पहले कुछ कसरत करनी चाहिए? नाश्ते के बारे में क्या? आज क्या पहनना चाहिए? मुझे बाइक लेनी चाहिए या बस? कॉफ़ी या चाय?
जीवन छोटे-छोटे निर्णयों की एक कभी न ख़त्म होने वाली श्रृंखला की तरह लगता है। और मज़े की बात यह है कि प्रतिदिन के हमारे फ़ैसलों में महज़ 5% सक्रिय रूप से लिए जाते हैं, जबकि 95% फ़ैसलों में हमारा चयन सहज रूप से होता है, यानी उनके लिए सोचना नहीं पड़ता। लेकिन हममें से अधिकांश लोग उन निर्णयों के प्रभाव को नहीं देखते हैं जो वास्तव में महत्वपूर्ण निर्णयों पर पड़ते हैं।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जितने ज़्यादा आपको फ़ैसले लेने पड़ते हैं, उतने ही जटिल वे बन जाते हैं। कई बार आप फ़ैसला कर-करके इतना थक चुके होते हैं कि आवेगपूर्ण निर्णय लेने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप 'निर्णय थकान या डिसीज़न फ़टीग' से ग्रस्त हैं। जब आप टालमटोल करने लगते हैं और किसी महत्वपूर्ण निर्णय के बारे में तनाव महसूस करते हैं जिसका अंतिम परिणाम ख़राब निर्णय या कोई निर्णय न लेना होता है - तो वह संभवतः निर्णय से जुड़ी थकान है। कामकाजी महिला, पुरुष हों या गृहिणी, लगभग हर व्यक्ति इस समस्या से गुजर रहा है, लेकिन जानकारी का अभाव होने से उसे इसका हल नहीं मिलता।
1) मैं निर्णय नहीं ले सकता/सकती, क्योंकि मैं बहुत थका हुआ और तनावग्रस्त हूं। (बचना)
2) मेरे लिए जानकारी जुटाना और निर्णय लेने के लिए इसका उपयोग करना कठिन है। (अनिश्चितता)
3) मैं बिना सोचे-समझे निर्णय लेता हूं। (आवेग)
4) मेरे मूड ने मेरे लिए निर्णय लेना मुश्किल बना दिया है। (टालमटोल)
Bu hikaye Aha Zindagi dergisinin November 2024 sayısından alınmıştır.
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अन्न उपजाए अंग भी उगाए
बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।
इसे पढ़ने का फ़ैसला करें
...और जीवन में ग़लत निर्णयों से बचने की प्रक्रिया सीखें। यह आपके हित में एक अच्छा निर्णय होगा, क्योंकि अच्छे फ़ैसले लेने की क्षमता ही सुखी, सफल और तनावरहित जीवन का आधार बनती है। इसके लिए जानिए कि दुविधा, अनिर्णय और ख़राब फ़ैसलों से कैसे बचा जाए...
जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।
चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।
सदियों के शहर में आठ पहर
क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!
... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....
एक वीगन का खानपान
अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...
सदा दिवाली आपकी...
दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।
'मां' की गोद भी मिले
बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।