बच्चों का पालन-पोषण हरेक माता-पिता के लिए अलग अनुभव लेकर आता है। सभी अभिवाभक चाहते हैं कि वह पूरे लाड़-प्यार से अपने बच्चों की परवरिश करें और उनके बड़े होने सफर को भरपूर जिएं। लेकिन बच्चों की परवरिश का सफर पूरी तरह खुशगवार नहीं होता क्योंकि इस सफर में कई बार थकान और झल्लाहट भरे क्षण भी आते हैं। विभिन्न शोध बताते हैं कि तकरीबन एक तिहाई मातापिता अपने बच्चों को पालते समय बर्न आउट का अनुभव करते हैं और यह माता-पिता दोनों को लगभग समान रूप से प्रभावित करता है। अकसर कहानियों में दिखाया सुनाया जाता है कि बच्चे की एक मुस्कुराहट दिनभर की सारी थकान उतार देती है। हालांकि यह झूठ नहीं है लेकिन हमेशा ही ऐसा महसूस हो, ये भी सच नहीं है। दरअसल, माता-पिता बनने का अनुभव अपने साथ खुशियों के पलों के साथ बहुत सारी जिम्मेदारियां भी लेकर आता है। बच्चों को पालने में बहुत ऊर्जा खर्च होती है, इसलिए कभी-कभी तनाव और दबाव बर्दाश्त से ज्यादा बढ़ जाता है। आजकल के समय में यह तनाव ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि ज्यादातर पति-पत्नी दोनों ही नौकरीपेशा होते हैं। ऐसे में घर और बच्चे की जिम्मेदारियों के बीच तालमेल बैठाना अकसर मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति को इमोशनल आउट कहा जाता है और यदि इसे नजरंदाज किया जाए तो मानसिक सेहत खराब होने के साथ-साथ आपसी रिश्तों पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है।
लक्षणों को समझें
Bu hikaye Anokhi dergisinin March 16, 2024 sayısından alınmıştır.
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अपने बच्चे को बेहतर तरीके से समझना चाहती हैं? मुश्किल बातचीत के लिए सुरक्षित और भरोसे से भरा माहौल बनाना चाहती हैं? इसके लिए बच्चे से भावनात्मक जुड़ाव विकसित करना जरूरी है। कैसे भावनाओं के स्तर पर अपने बच्चे से जुड़ें, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी
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जेस्टेशनल डायबिटीज यानी गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने के मामले पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़े हैं। गर्भवती महिला और शिशु दोनों के लिए यह क्यों है खतरनाक और कैसे इससे बचें, बता रही हैं शमीम खान
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ये हैं मेहंदी के नए ट्रेंड
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