यह राष्ट्रीय प्रतिज्ञा हमें यह एहसास दिलाती है कि हमारा एक व्यक्ति के रूप में अस्तित्व क्या है? यह हमें देश की महत्ता से परिचित करवाती है. यह प्रतिज्ञा देश के सीख देती लोगों को अपनी संस्कृति पर नाज़ करने क है. यह राष्ट्रीय प्रतिज्ञा ही है, जो हमें देशवासियों के प्रति वफादार होने का पाठ पढ़ाती है. गौरतलब हो कि राष्ट्रीय प्रतिज्ञा ही है, जो आमतौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में और लगभग देश के सभी स्कूलों में रोज़ पढ़ी जाती है. इस राष्ट्रीय प्रतिज्ञा के पीछे की भी अपनी एक कहानी है. इसे सर्वप्रथम हिंदी भाषा में नहीं, बल्कि तेलुगू भाषा में लिखा गया था. जिसके बाद धीरे धीरे इसकी महत्ता एक राष्ट्र के सापेक्ष बढ़ती गई. जो युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना जागृत करने के साथ, सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना जगाने का काम करने लगी.
राष्ट्रगान या राष्ट्रीय गीत के विपरीत इस प्रतिज्ञा के लेखक सुब्बाराव हैं. जो लम्बे समय तक अल्पज्ञात ही रहे. उनका नाम न तो किताबों में दर्ज हुआ और न ही किसी दस्तावेज़ में इस बात का उल्लेख किया गया. सुब्बाराव द्वारा लिखी प्रतिज्ञा, राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के बराबर की स्थिति में होने के बावजूद लेखन अपनी स्थिति से अनजान थे. लेकिन आज भी उनकी लिखी प्रतिज्ञा के भारत में अपने मायने हैं. वर्तमान दौर में भी उनकी यह प्रतिज्ञा भारतीय युवाओं के मन मष्तिस्क में देश प्रेम की अलख जगा रही है. सभी देशवासियों को एकसूत्र में पिरोकर रखे हुए है. इस राष्ट्रीय प्रतिज्ञा के अक्षरशः कुछ इस तरह से हैं-
'भारत मेरा देश है. हम सब भारतवासी भाई बहन हैं.
मुझे अपना देश प्राणों से भी प्यारा है.
इसकी समृद्धि और विविध संस्कृति पर मुझे गर्व है.
हम इसके सुयोग्य अधिकारी बनने का सदा प्रयत्न करते रहेंगे.
मैं अपने माता-पिता, शिक्षकों एवं गुरुजनों का सदा आदर करूँगा
और सबके साथ शिष्टता का व्यवहार करूँगा.
मैं अपने देश और देशवासियों के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा
करता हूँ. उनके कल्याण और समृद्धि में ही मेरा सुख निहित है.'
Bu hikaye Gambhir Samachar dergisinin November 16, 2022 sayısından alınmıştır.
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