दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति के लिए सत्येंद्र जैन का जेल जाना भी बहुत बड़ा झटका रहा, लेकिन तब मनीष सिसोदिया ने सब ऐसे संभाल लिया था, जैसे कुछ हुआ ही न हो - और वो बेफिक्र होकर चुनावी मुहिम चलाते रहे. वैसे भी जो मंत्री पहले से ही दर्जन भर से ज्यादा विभाग संभालता रहा हो, उसके लिए एक-दो और का जिम्मा लेना तो बायें हाथ के खेल जैसा ही है - और ये बड़ी वजह रही कि दिल्ली को मनीष सिसोदिया के हवाले कर अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी के विस्तार पर फोकस कर रहे थे.
अन्ना आंदोलन तो बहुत बाद की बात है, मनीष सिसोदिया तो अरविंद केजरीवाल के साथ तब से हैं जब वो लोग सूचना के अधिकार पर काम कर रहे थे - और दिल्ली में आप की सरकार बन जाने के बाद तो अरविंद केजरीवाल के लिए राजनीतिक रूप से मनीष सिसोदिया अपरिहार्य से हो गये. चुनाव नतीजों के हिसाब से देखें तो अरविंद केजरीवाल गुजरात में जमे रहने के बावजूद महज सात सीटें जीत पाये और दिल्ली को मनीष सिसोदिया के भरोसे छोड़ कर भी अरविंद केजरीवाल ने एमसीडी में पार्टी का पताका तो फहराया ही अब तो मेयर भी आम आदमी पार्टी का ही है. ये मनीष सिसोदिया पर खुद से भी ज्यादा भरोसा ही रहा है जो अरविंद केजरीवाल उनको डिप्टी सीएम बनाने के बाद अपने हिस्से के विभाग भी सौंप दिये थे- और सत्येंद्र जैन के जेल चले जाने के बावजूद मनीष सिसोदिया के भरोसे ही उनको मंत्री बनाये रखा.
मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल के पास ऑपशन तो कई रहे होंगे. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने आसान रास्ता ही चुना है. अपनी पसंद के दो विधायकों को मंत्री बनाने का प्रस्ताव उप राज्यपाल के पास भेज दिया है - वो चाहते तो मनीष सिसोदिया वाले विभाग अपने पास भी रख सकते थे. वैसे तो ये मुख्यमंत्री का अधिकार होता है कि वो कैसे अपनी सरकार चलाता है, लेकिन पहले सत्येंद्र जैन को महीनों तक मंत्री बनाये रखना और फिर मनीष सिसोदिया के गिरफ्तार होते ही अचानक से दोनों ही मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया जाना ऐसा फैसला है जिसने अरविंद केजरीवाल को अपने राजनीतिक विरोधियों के सामने बचाव की मुद्रा में ला दिया है.
Bu hikaye Gambhir Samachar dergisinin March 16, 2023 sayısından alınmıştır.
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