नं.1 टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआइएसएस), मुंबई
मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआइएसएस/टिस) के लिए "मेकिंग अ डिफरेंस" कोई लच्छेदार जुमला भर नहीं. यह ऐसा मूलमंत्र है जिसे संस्थान अपने हरेक छात्र के भीतर गहराई से पैवस्त कर देता है. यही बात इस प्रतिष्ठित संस्थान को औरों से अलहदा बनाती है. यह छात्रों का सपना है और यहां वे सपने को हकीकत में बदलने का हुनर सीखते हैं.
यही बात होटल मैनेजमेंट के छात्र रहे 25 वर्षीय रौनक गायकवाड़ को टीआइएसएस की ओर खींच लाई. गायकवाड़ नागपुर में क्लाउड किचन चला रहे थे और उनके भीतर “समाज को कुछ लौटाने" की इच्छा बलवती हो उठी. और इस भावना को आगे बढ़ाने के लिए टिस से बेहतर जगह भला दूसरी क्या हो सकती है जो पिछले एक दशक से इंडिया टुडे के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों के सर्वेक्षण में शीर्ष स्थान पर है. गायकवाड़ स्कूल ऑफ सोशल वर्क के दलित और जनजातीय अध्ययन और ऐक्शन प्रोग्राम के छात्र हैं. उन्हें हाल ही में किसी के जीवन में थोड़ा-सा असर छोड़ने का वक्त अवसर मिला. अपने फील्ड वर्क के तहत उन्होंने वंचित युवाओं के लिए समर्पित एनजीओ तरुण सदन के लिए काम करते हुए 18 साल के एक नौजवान को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाया ताकि वह काम और पढ़ाई दोनों साथ-साथ जारी रख सके.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin July 05, 2023 sayısından alınmıştır.
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"