दरभंगा आयुक्त कार्यालय के निचले तले पर पांच कमरों में दस कर्मचारी दिन भर खाली बैठे रहते हैं. इनके पास कोई काम नहीं है, सिवाय कभी-कभार आ गई चिट्ठियों का जवाब देने के ये सभी कर्मचारी प्रस्तावित दरभंगा एम्स के स्टाफ हैं और अगस्त, 2022 से इसी तरह बैठकर समय काट रहे हैं. पिछले साल इस एम्स के लिए कार्यकारी निदेशक माधवानंद कर की भी नियुक्ति हो गई है मगर उनके ऑफिस के दरवाजे पर ताला लगा है. एक क्लर्क नीलमणि झा बताते हैं कि कर को एम्स जोधपुर का अतिरिक्त प्रभार मिला हुआ है. वे वहीं गए हैं. कार्यकारी निदेशक के अलावा दरभंगा एम्स के लिए उप-निदेशक, वित्तीय सलाहकार और अभियंता समेत सात पद भी स्वीकृत हो चुके हैं. उप-निदेशक के पद पर भर्ती के लिए विज्ञापन भी निकल चुका है. मगर यह एम्स कहां बनेगा, आज तक तय नहीं हो पाया है. अपनी घोषणा के आठ साल बाद भी !
जब तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015 के बजट भाषण में पांच राज्यों में एम्स खोले जाने की घोषणा की थी, तब उन्होंने यह भी कहा था, "बिहार में चिकित्सा विज्ञान को आगे बढ़ाने की जरूरत को देखते हुए मैं वहां भी एक एम्स जैसा संस्थान खोले जाने की घोषणा करता हूं." यह घोषणा करते हुए शायद उनके दिमाग में दिल्ली एम्स की भीड़-भाड़ में सबसे अधिक नजर आने वाले बिहारी चेहरे रहे होंगे. मगर इस घोषणा के आठ साल, चार महीने पूरे होने और उनके दिवंगत होने के बाद भी, आज तक केंद्र और बिहार सरकार इस एम्स को खोले जाने की प्रक्रिया में चार कदम तय नहीं कर पाई हैं. दूसरी तरफ, बिहार के अलावा जिन पांच राज्यों में उस साल एम्स खोले जाने की घोषणा हुई थी, सभी जगह पढ़ाई शुरू हो चुकी है. तीन जगहों पर कैंपस का निर्माण भी पूरा हो चुका है, दो में निर्माण कार्य जारी है. इसके बाद 2017 में केंद्र सरकार ने दो और राज्यों, झारखंड और गुजरात में एम्स शुरू करने की घोषणा की. वहां भी एम्स शुरू हो चुके हैं. (देखें: बाकी एम्स की स्थिति)
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin July 26, 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin July 26, 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
सपनों के सौदागर
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
पासा पलटने वाले महारथी
दरअसल, जिंदगी की तरह खेल में भी उतारचढ़ाव का दौर चलता रहता है.
गुरु और गाइड
अल्फाज, बुद्धिचातुर्य और हास्यबोध उनके धंधे के औजार हैं और सोशल मीडिया उनका विश्वव्यापी मंच.
निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
अलहदा और असाधारण शख्सियतें
किसी सर्जन के चीरा लगाने वाली ब्लेड की सटीकता उसके पेशेवर कौशल की पहचान होती है.
अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.