हमारे देश में विकास विभिन्न सार्वजनिक संस्थानों के कामकाज पर निर्भर है, इसलिए जन धारणा खास भूमिका निभाती है. असल में इसी के इर्द-गिर्द अफसाने गढ़े जाते हैं और जनमत तैयार किया जाता है. प्रस्तावित समान नागरिक संहिता की शुरुआत और अदाणी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट से लेकर जाति और स्त्री-पुरुष समानता जैसे व्यापक विषयों तक, इंडिया टुडे मूड ऑफ द नेशन (एमओटीएन) या देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण, 2023 न केवल यह संकेत देता है कि लोग देश के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों पर क्या राय रखते हैं, बल्कि उनकी सामूहिक आकांक्षाएं और राष्ट्र के बारे में नजरिए का भी टोह लेता है.
सर्वेक्षण के कुल नतीजे जटिल तस्वीर पेश करते हैं. पहली बार, एक-तिहाई से ज्यादा लोग (36.6 फीसद) लोकतंत्र के चार स्तंभों-विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के कामकाज को लकर दुविधा में हैं. हालांकि, एक धारणा बनी हुई है कि दूसरे बाकी स्तंभों के मुकाबले न्यायपालिका ही लोकतांत्रिक मानदंडों को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. वैसे, ऐसी राय रखने वाले जनवरी, 2022 (34 फीसद) के मुकाबले आज कुछ कम (27.8 फीसद) हैं. मीडिया पर भरोसा 20.3 फीसद से घटकर 12 फीसद पर आ गया है. फिर अपनी राय को अभिव्यक्त करने में अगस्त 2022 (49.8 फीसद) के मुकाबले आज कम लोग (45.6 फीसद) खुद को आजाद महसूस करते हैं. यही नहीं, 23.5 फीसद लोगों का कहना है कि वे राजनीति पर राय तो व्यक्त कर पाते हैं, लेकिन धर्म पर नहीं. यह बढ़ते ध्रुवीकरण का साफ-साफ प्रतिबिंब है. इस बार भारतीय लोकतंत्र को लेकर अधिक लोग चिंतित हैं. लगभग आधे (49.8 फीसद) लोगों ने इस मामले में आशंका व्यक्त की है, जो जनवरी 2021 के देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में 42 फीसद से ज्यादा है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin September 06, 2023 sayısından alınmıştır.
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