पराग डेयरी. कानपुर में नौबस्ता चौराहे से करीब तीन किलोमीटर दूर निराला नगर की यही पहचान थी. 67 एकड़ में फैली डेयरी के बाहर खड़ी दूध की सैकड़ों गाड़ियां कानपुर और आसपास के जिलों के दुग्ध किसानों के फलते-फूलते व्यापार की गवाही देती थीं. यह बात 1962 के बाद की है जब कानपुर में पराग डेयरी का 50 हजार लीटर प्रति दिन क्षमता का प्लांट लगा था. डेयरी पर ध्यान न देने से 2012 में इसका उत्पादन गिरकर 20 हजार लीटर दूध प्रति दिन रह गया. एक साल बाद जर्जर और खराब हो चुकी मशीनों के चलते इस प्लांट को बंद कर दिया गया. पुराने प्लांट की बगल में 166 करोड़ रुपए की लागत से पराग डेयरी के अत्याधुनिक प्लांट की आधारशिला 12 अप्रैल, 2016 को रखी गई. तीन साल बाद 2019 में नया प्लांट बनकर तैयार हो गया. पानी चलाकर प्लांट की टेस्टिंग भी की गई. लेकिन इस डेयरी प्लांट को चलाने का कोई मुहूर्त नहीं निकाला जा सका. नतीजा: कानपुर पराग डेयरी का यह अत्याधुनिक प्लांट पिछले तीन वर्ष से धूल फांक रहा है. पराग डेयरी संचालित करने वाले दुग्ध संघ पर 12 करोड़ रुपए से अधिक की देनदारी है. करीब छह करोड़ रुपए किसानों के बाकी हैं. पुराने बकाए का भुगतान न होने से किसान यहां दूध देने से कतरा रहे हैं. डेयरी में तैनात 22 स्थाई और आठ संविदा कर्मचारियों ने पिछले दो वर्ष से वेतन का मुंह नहीं देखा है.
घाटे में चलने की वजह से 1 जून को जैसे ही गोरखपुर इंडस्ट्रियल एरिया में स्थापित पराग डेयरी प्लांट को बंद करने का निर्णय लिया गया, दूध देने के एवज में लंबे समय से बकाया धन की मांग कर रहे पशुपालक आशंकित हो उठे. देवरिया और गोरखपुर के दुग्ध उत्पादक पशुपालकों ने 22 जून को पराग डेयरी, गोरखपुर के प्रबंधक बद्री सिंह बोरा को घेर लिया. दुग्ध संघ के चेयरमैन रंजीत सिंह को उनके चैंबर से बाहर नहीं निकलने दिया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले में दूध उत्पादक किसानों के प्रदर्शन से हड़कंप मच गया. सहायक दुग्धशाला विकास अधिकारी, गोरखपुर रेणू कुमारी ने मौके पर पहुंचकर किसानों की मांगें मानने का आश्वासन देकर धरने को समाप्त कराया.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin September 20, 2023 sayısından alınmıştır.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"