नई दिल्ली में जी20 का शिखर सम्मेलन शुरू होने से पहले, शेक्सपीयर के शब्दों में कहें तो, ए टाइड इन द अफेयर्स ऑफ मैन सरीखा मामला था. जूलियस सीजर नाटक की इस लाइन का मोटा-मोटा अर्थ यह है कि किसी भी इंसान के लिए मौके समंदर की लहर की तरह आते हैं और फिर देखते-देखते चले जाते हैं.
दिल्ली में इस महाआयोजन से पहले विश्व व्यवस्था तहस-नहस थी. यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को बांट दिया था. जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निबटने के तरीकों को लेकर फूट पड़ी थी. जिंदगियों और अर्थव्यवस्थाओं को महामारी ने तार-तार कर दिया था. विश्व व्यापार करने के तौर-तरीकों को लेकर एका नहीं था. टेक्नोलॉजी के धनी और निर्धन दोफाड़ थे. आय समूहों और विकास सूचकांकों में चीर-फाड़ हो चुकी थी. दरारें गहरी और चमकदार ढंग से तीखी थीं.
बर्बादी और मायूसी के इस समूचे माहौल के बीच दुनिया के सबसे ताकतवर समूह के सामने एक विकल्प था. वह दुनिया को सौहार्द, उपचार, उम्मीद और खुशहाली की तरफ खींच सकता था. अगर ऐसा नहीं होता, तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होने के फैसले के बाद जी20 की भारतीय अध्यक्षता को नेताओं के सर्वसम्मत घोषणापत्र के बगैर समाप्त होने की भीषण संभावना का सामना करना पड़ता. यह नाकामी का संकेत होता और भारत के निंदकों की बांछें खिल जातीं, पर दुनिया की मुसीबतें और जद्दोजहद और बढ़ जातीं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin September 27, 2023 sayısından alınmıştır.
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