अक्तूबर की 7 तारीख को सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की नवगठित संविधान पीठ की सुनवाई के लिए छह मामले सूचीबद्ध किए. इनमें पांचवें नंबर पर रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक मामला है, जिसमें करीब दो दर्जन याचिकाओं ने वित्त अधिनियम, 2017 की वैधता को चुनौती दी है. इस विवादास्पद कानून ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण और ऋण वसूली न्यायाधिकरण सरीखे विभिन्न सांविधिक न्यायाधिकरणों के प्रशासन और ढांचे में भारी फेरबदल किया था. याचिकाओं का कहना है कि इस अधिनियम का मनी बिल यानी धन विधेयक के रूप में पारित होना गैरकानूनी था.
इन छह मामलों में सबसे पुराना मामला 1998 की एक याचिका है. पांचवें नंबर पर सूचीबद्ध होने के बावजूद, भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) डी. वाइ. चंद्रचूड़ ने कहा कि पीठ धन विधेयक के मामले को "कुछ प्राथमिकता" देगी. याचिकाकर्ताओं के वकीलों कपिल सिब्बल और मेनका गुरुस्वामी की मामले को तुरंत सूचीबद्ध करने की अपीलों के जवाब में उन्होंने यह कहा. स्वाभाविक ही केंद्र सरकार बेचैन हो उठी. उसकी नुमाइंदगी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि मामलों को "राजनैतिक जरूरतों" के आधार पर प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए. इस पर सीजेआइ ने जवाब दिया, "हमारे ऊपर छोड़ दीजिए; हम तय करेंगे."
शीर्ष अदालत इस कानून को धन विधेयक की श्रेणी में रखने की वैधता की जांच के लिए अब तैयार है. धन विधेयकों के रूप में पारित दूसरे अहम कानून भी इस न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएंगे-मसलन, आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम 2016, इलेक्ट्रॉरल बॉन्ड स्कीम 2017 और हाल में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) 2002, तथा जीवन बीमा निगम (एलआइसी) अधिनियम 1956 में हुए संशोधन.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin November 01, 2023 sayısından alınmıştır.
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