देश का सबसे पुराना सिविल केस अब 72 साल का हो चुका है. पश्चिम बंगाल के मालदा में सिविल जज सीनियर डिविजन की अदालत में चल रहा जाबेंद्र नारायण चौधरी बनाम आशुतोष चौधरी का मुकदमा किसी तथ्य की वजह से नहीं, बल्कि 18 सितंबर, 2023 को देश का सबसे पुराना केस होने के कारण महत्वपूर्ण है. संपत्ति बंटवारे के विवाद का यह केस 1952 से चल रहा है और मूल वादी-परिवादी के उत्तराधिकारी अब भी केस लड़ रहे हैं. तारीख-पर-तारीख पड़ रही है. यह देश में 1.1 करोड़ लंबित दीवानी या सिविल मुकदमों में एक है जबकि अदालतों में लंबित कुल मुकदमे 4.4 करोड़ से अधिक हैं. दीवानी मुकदमों में ज्यादातर जमीन-जायदाद से जुड़े हैं और उनमें भी सात लाख से ज्यादा मुकदमों में दस्तावेजों का इंतजार है. भविष्य में मुकदमे 72 साल न चलें और दस्तावेज सहज उपलब्ध हों, इसके लिए उनका ऑनलाइन उपलब्ध होना जरूरी है. दस्तावेजों तक आम आदमी, वादी - प्रतिवादी, अदालत और सरकारी एजेंसियों की पहुंच तय करने के लिए केंद्र सरकार भूमि दस्तावेजों का डिजिटलीकरण या डिजिटाइजेशन कर रही है. हालांकि लंबित मुकदमों की संख्या ज्यादा होने के बहुत सारे अन्य कारण भी हैं. देश के करीब 95 प्रतिशत गांवों के रिकॉर्ड ऑफ राइट्स यानी जमीन के दस्तावेजों का कंप्यूटरीकरण हो चुका है और 14 राज्यों तथा केंद्र शासित क्षेत्रों में यह 99 प्रतिशत तक पहुंच गया है.
डिजिटाइजेशन के लिए जिम्मेदार केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन भूमि संसाधन विभाग के संयुक्त सचिव सोनमणि बोरा बताते हैं, "लोगों को आसानी से भू-अभिलेख उपलब्ध कराना बेहद कठिन काम था. पटवारी से जानकारी निकालना आसान नहीं था लेकिन टेक्नोलॉजी ने इसे काफी आसान बना दिया. खसरा खतौनी की सत्यापित प्रतिलिपि (डिजिटली हस्ताक्षरित) आप पा सकते हैं. डिजिटाइजेशन से दस्तावेजों में अपडेशन तेजी से से हुआ. हालांकि अभी भी बटांकन (नक्शे में जमीन का बंटवारा) करना और डेटा सुधारना, वगैरह बाकी है."
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin November 01, 2023 sayısından alınmıştır.
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