जम्मू-कश्मीर और गुजरात के पूर्व राज्यपाल बी. के. नेहरू ने एक बार संवैधानिक पद को "सत्तारूढ़ पार्टी के थके हुए रिटायर सदस्य के लिए आरक्षित" बताया था, जिसके लिए राज्यपाल पद शानदार सेवानिवृत्ति थी. एक पूर्व राज्यपाल ने अपनी भूमिका को "सुपर होस्टेस" जैसा बताया था, जबकि दूसरे ने अपने कार्यकाल के दौरान 200 उपन्यास पढ़ डालने का दावा किया. तमिलनाडु के राज्यपाल रवींद्र नारायण रवि इनमें से कई मामलों में दोषी नहीं हो सकते हैं, लेकिन इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) के इस पूर्व अधिकारी पर राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को महीनों तक (उनमें से कुछ को वर्षों तक) दबाए रखने का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को जब उनकी आलोचना की तो न सिर्फ उनके कामकाज, बल्कि देश के संघीय ढांचे में राज्यपाल की भूमिका पर भी तीखी बहस छिड़ गई.
दस दिनों में दूसरी बार शीर्ष अदालत ने विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों के कामकाज पर तीखी टिप्पणियां की थीं. उनमें से चारतमिलनाडु, पंजाब, केरल और तेलंगानाकी सरकारों ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और आरोप लगाया है कि विधेयकों की मंजूरी लटकाए रखना न सिर्फ देश की संघीय भावना के खिलाफ है, बल्कि राजकाज के रोजमर्रा के कामकाज को भी प्रभावित कर रहा है. शीर्ष अदालत ने 20 नवंबर को तमिलनाडु और केरल की दो याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की.
तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार ने रवि "राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी" की तरह पेश आने और महीनों तक बिलों को दबाकर संवैधानिक गतिरोध पैदा करने का आरोप लगाया है. केरल में वाम मोर्चा सरकार का कहना है कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी ऐसा ही कर रहे हैं और “जन अधिकारों को मात देने" की कोशिश कर रहे हैं. पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार ने भी क्रमश: राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और तमिलिसई सौंदर्यराजन के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए हैं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin December 06, 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin December 06, 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"