करगिल शहीद दिवस, यानी बीती 26 जुलाई, 2024 की उमस भरी दुपहरी. करीब 12:30 बजे का वक्त. झुंझुनूं जिले के सीथल गांव के आखिरी छोर पर एक खेत से लगे शहीद मनीराम और उनके तीन भाइयों के घर हैं. 1999 के 'ऑपरेशन विजय' में अपने साहस, शौर्य और पराक्रम का परिचय देने वाले शहीद मनाराम के सबसे छोट भाइ राहिताश्व के छह-सात कमरा वाल बंद घर में उनकी 90 वर्षीया मां चावली देवी बीमार पड़ी दिखती हैं. इस बुजुर्ग महिला की चारपाई के नीचे बासी हो चला खाना रखा हुआ था जिसे देखकर पता चलता था कि किसी उपेक्षा के बजाय न खा पाने की मजबूरी के चलते इसमें से एक-दो निवाले से ज्यादा नहीं खाया गया है. घर में कोई भी नहीं था जो बीमार महिला को खाना खिला सके या तीमारदारी कर सके. करवट बदलतीं चावली देवी की फूलती सांसें मानो किसी अपने को पुकार रही थीं.
करगिल में 36 साल का जवान बेटा खोने वाली इस मां के दुख उसकी उम्र से भी बड़े हैं. वे लगभग 30 साल पहले हुई अपने पति की मौत से उबर भी नहीं पाई थीं कि 25-26 साल पहले सबसे बड़े बेटे सुभाष की दुर्घटना में मौत हो गई. सुभाष के के तीन साल बाद ही मनीराम करगिल युद्ध के दौरान 3 जुलाई, 1999 को द्रास सेक्टर में दुश्मनों से मुकाबला करते हुए शहीद हो हुए शहीद हो गए थे. 2015 में उनके तीसरे बेटे शीशराम हार्ट अटैक से चल बसे तो उसके तीन साल बाद ही सबसे छोटे बेटे रोहिताश्व की एक दुर्घटना में मौत हो गई. 35 साल की इस अवधि में बेटे और पति ही नहीं, चावली की चार बेटियों के पतियों की भी असमय मौत हो चुकी है. पूरी तरह टूट चुकीं चावली कहती हैं, " 'अब तो दवा ऊं भी आराम कौनी, मैं तो दिन-रात भगवान ऊं या ही प्रार्थना करूं कि अब मनैं भी मुसाणा माईं भेज दे. ( अब तो दवा से भी आराम नहीं मिलता, मैं तो दिन रात भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि मुझे भी श्मशान भेज दे.)"
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin August 14, 2024 sayısından alınmıştır.
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