उन्होंने सीएम पोर्टल के माध्यम से यह मांग मुख्यमंत्री के सामने उठाई है. हालांकि आजमगढ़ अकेला जिला नहीं है, जहां डीएपी किल्लत से किसान परेशान हैं, बल्कि प्रदेश के कई जिलों से ऐसी खबरें आ रही हैं.
उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही प्रदेश में डीएपी की कमी को लेकर अक्तूबर में ही केंद्र सरकार को आगाह कर चुके थे. 19 अक्तूबर को उन्होंने नई दिल्ली के पूसा कृषि अनुसंधान संस्थान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने एक कार्यक्रम में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उत्तर प्रदेश में बीते अक्तूबर के मुकाबले इस बार डीएपी का आधा ही स्टॉक आ पाया है और आगे समस्या पैदा होगी.
शाही को जिस बात का अंदेशा था, वह प्रदेश के कई जिलों में सच होती दिख रही है. उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड समेत अधिकांश राज्यों से डीएपी की कमी की शिकायतें आ रही हैं. कहीं पुलिस की सुरक्षा में राशनिंग करते हुए डीएपी किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है तो कहीं किसानों को खाद की दुकानों से खाली हाथ लौटना पड़ रहा है और मजबूरी में ब्लैक में अधिक पैसे देकर डीएपी खरीदना पड़ रहा है. 2020-22 में जिस तरह से यूरिया की किल्लत अधिकांश राज्यों में महसूस की गई थी, कुछ इसी तरह की स्थिति इस बार डीएपी को लेकर बन गई है.
भारत अपनी डीएपी जरूरतों के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है. देश में 202223 में 105.31 लाख टन डीएपी की खपत हुई. इसमें से 65.83 लाख टन को आयात किया गया और 2021-22 में यह आंकड़ा 54.62 लाख टन था. भारत अपनी जरूरत का करीब 60 फीसद डीएपी आयात करता है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय उठा-पटक का असर भारत में इसकी आपूर्ति पर भी पड़ता है.
चीन दुनिया में डीएपी का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन पिछले कुछ साल से वह वैश्विक बाजार में डीएपी बेचने की जगह अपने यहां इसकी खपत बढ़ाने पर जोर दे रहा है. इसके अलावा रूस- यूक्रेन युद्ध की वजह से भी भारत में डीएपी आयात पर बुरा असर पड़ा. वहीं इज्राएल-फिलिस्तीन संघर्ष के चलते लाल सागर के जरिए आने वाला खाद अब इसके मुकाबले कहीं अधिक लंबे रूट से केप ऑफ गुड होप होते हुए आ रहा है. इससे डीएपी आने में देर तो हो ही रही है, इसकी लागत भी बढ़ गई है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin December 25, 2025 sayısından alınmıştır.
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