भाग्य के साथ नई भेंट
India Today Hindi|August 28, 2024
आर्थिक स्वतंत्रता भारत की महान लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और राजनैतिक स्वतंत्रता की पूरक होनी चाहिए. कामकाजी होते हुए भी गरीब रहने की स्थिति को समाप्त करने के लिए नवाचारों की जरूरत है, खासकर वहां, जहां कौशल, शिक्षा और नौकरियों का मेल होता है
मनीष सभरवाल
भाग्य के साथ नई भेंट

राजनीति और अर्थशास्त्र, 1947 से भारत की दोहरी चुनौतियां रही हैं और इनमें दो जोखिम भरे प्रयोग हुए, सभी को मत देने का अधिकार राजनीति का एक प्रयोग था जिसने बहुत प्रभावी ढंग से काम किया है. इसने बहुत से खांचों में बेटे भारतीय समाज को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनाया है. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर हमारा प्रयोग-समाजवादी आर्थिक नीति पर चलने का फैसला जो कांग्रेस के 1955 के अवाडी प्रस्ताव पर आधारित था-उतना ही विफल रहा क्योंकि इसने उद्यमशीलता की स्वतंत्रता को रोका, जिससे नौकरियां पैदा होतीं. इसका एक नतीजा यह भी रहा कि पूंजी के अभाव में हमारा श्रम पंगु हो गया और श्रम बिना हमारी पूंजी अपंग है.

हितोपदेश कहता है, 'विद्या ददाति विनयम्' यानी विद्या से विनम्रता आती है. लेकिन इतनी सुंदर बात कपोल कल्पनाओं में लीन विद्वानों, संभ्रातवादियों, लोकहितवादियों, नौकरशाहों, शिक्षाविदों और कामगारों की हकपरस्ती का दंभ भरने वाले ट्रेड यूनियनवादियों के गले नहीं उतर पाई. कल्पनाशील लोग निजी नियोक्ताओं को भी एक सरकार की तरह स्थाई संस्थाओं के रूप में देखते हैं जो सरासर गलत है. संभ्रांतवादियों का मानना है कि निजी क्षेत्र का वेतन ग्राहकों के बजाए शेयरधारक देते हैं. लोकहितवादियों का मानना है कि निजी रोजगार को ऋण से वित्त पोषित सरकारी खर्चों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है. नौकरशाहों का मानना है कि वैधानिक नियोक्ता लाभों को वेतन से वित्तपोषित किया जाता है. शिक्षाशास्त्री कौशल को हेय दृष्टि से देखते थे. और ट्रेड यूनियनवादियों का मानना है कि नौकरी को खत्म होने से रोकना भी एक तरह से नौकरी का सृजन करना है. ये सारे छह दृष्टिकोण इसकी गहराई में न झांकने के विचार से ग्रस्त हैं. इस स्थिति को बदलने के लिए निम्नलिखित सुधारों की जरूरत है.

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परदेस में परचम
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परदेस में परचम

भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.

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November 13, 2024
भारत का विशाल कला मंच
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सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.

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November 13, 2024
सपनों के सौदागर
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हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.

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November 13, 2024
पासा पलटने वाले महारथी
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दरअसल, जिंदगी की तरह खेल में भी उतारचढ़ाव का दौर चलता रहता है.

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November 13, 2024
गुरु और गाइड
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गुरु और गाइड

अल्फाज, बुद्धिचातुर्य और हास्यबोध उनके धंधे के औजार हैं और सोशल मीडिया उनका विश्वव्यापी मंच.

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November 13, 2024
निडर नवाचारी
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निडर नवाचारी

खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.

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November 13, 2024
अलहदा और असाधारण शख्सियतें
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अलहदा और असाधारण शख्सियतें

किसी सर्जन के चीरा लगाने वाली ब्लेड की सटीकता उसके पेशेवर कौशल की पहचान होती है.

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November 13, 2024
अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
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अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे

महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.

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November 13, 2024
बोर्डरूम के बादशाह
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बोर्डरूम के बादशाह

ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.

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November 13, 2024
देश के फौलादी कवच
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देश के फौलादी कवच

लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.

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November 13, 2024