अगस्त के शुरू में परस्पर विरोधी अभियानों के कारण सत्ता पक्ष और विपक्ष की सियासी दुश्मनी खुलकर सामने आ गई. सिद्धरामैया को असली झटका 16 अगस्त को लगा जब कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) में अनियमितताओं के आरोपों पर मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच और मुकदमा शुरू करने संबंधी याचिकाओं को मंजूरी देने का फैसला किया.
सिद्धरामैया ने राज्यपाल के आदेश को 'गैर-कानूनी और अमान्य' घोषित करने की मांग वाली एक याचिका के साथ 19 अगस्त को कर्नाटक हाइकोर्ट का रुख किया. उस याचिका में कहा गया कि पूरे मामले पर मंत्रिपरिषद की सलाह को दरकिनार कर मुकदमा चलाने की मंजूरी संबंधी आदेश जारी किया गया. यह भी कहा गया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए के तहत ऐसी मंजूरी की निर्धारित प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई है. हाइकोर्ट ने 29 अगस्त को सीएम की याचिका खारिज कर दी.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin September 11, 2024 sayısından alınmıştır.
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परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
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निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
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अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.