मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 17 अक्तूबर को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में इस संकल्प को पारित कराया. वे 24 अक्तूबर को दिल्ली आए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह को वह प्रस्ताव सौंपा. 4 नवंबर को छह साल बाद जम्मूकश्मीर विधानसभा का पहला सत्र हुआ जिसमें पुलवामा से पीडीपी विधायक वहीद-उर-रहमान पारा 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव लाने की कोशिश करके छा ए. इस सत्र ने घाटी के पुराने जख्म उभारे तो लोगों के दिलों में एक नया जोश भी भरा. वैसे उमर सरकार भलीभांति यह समझती है कि केंद्र शासित प्रदेश की असल शक्ति उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के हाथ में है.
जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की कसक कश्मीरी दलों में कितनी गहरी है, इसका साफ संकेत 31 अक्तूबर को श्रीनगर के डल झील के किनारे शेर-ए-कश्मीर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में आयोजित केंद्र शासित प्रदेश स्थापना दिवस के बहिष्कार में दिखाई दिया. सत्ताधारी एनसी, पीडीपी और कांग्रेस नेताओं को तो इसमें शामिल नहीं ही होना था, मगर भाजपा के सभी 29 विधायकों की इसमें अनुपस्थिति हैरान करने वाली थी. इसके बाद दिल्ली में पार्टी हाइकमान से मंजूरी न मिलने जैसी बातें शुरू हो गईं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin November 20, 2024 sayısından alınmıştır.
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डीएपी की किल्लत का जिम्मेदार कौन?
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