थार में सर्दी की आमद शुरू हो चुकी है लेकिन जैसलमेर जिले का बसिया क्षेत्र इन दिनों उबाल पर है. यहां प्रस्तावित अदाणी कंपनी के सोलर प्लांट के विरोध में बइया, गाले की बस्ती और मगरा गांव के लोग एक पखवाड़े से धरने पर हैं. कहानी में नया मोड़ उस वक्त आया जब बाड़मेर जिले के शिव क्षेत्र के विधायक रवींद्र सिंह भाटी आंदोलनकारियों के साथ आ डटे. एक तबके का मानना है कि भाटी यहां अपनी राजनैतिक जमीन बनाने को ऐसा कर रहे हैं.
पर्यावरणविद् सुमेर सिंह सांवता पिछले 15 साल से जैसलमेर जिले में ओरण यानी चरागाहों की जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वे साफ कहते हैं, " ओरण की लड़ाई किसी सियासी पार्टी की लड़ाई नहीं. ऐसे में इसे बचाने के लिए कोई भी नेता साथ आता है तो उसका स्वागत है." बइया ग्राम पंचायत के सरपंच पदम सिंह तुरंत इस पर जोड़ते हैं, "मामला गोचर या ओरण का है ही नहीं. यहां जान-बूझकर बखेड़ा खड़ा किया जा रहा है. जहां कंपनी ग्रिड स्टेशन बना रही है वह हमारी खातेदारी जमीन है. भाटी अदाणी कंपनी पर दबाव बनाकर निजी स्वार्थ साधना चाहते हैं. बाड़मेर में चुनाव हारने के बाद अब वे जैसलमेर में संभावनाएं तलाश रहे हैं."
पर भाटी आरोपों से कतई विचलित नहीं. वे कहते है, "मैं यहां राजनीति करने नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और जीवन आधार ओरण को बचाने आया हूं. ओरण मल्टीनेशनल कंपनियों को दे दिए गए तो यहां पशु-पक्षी, यहां के लोग कहां जाएंगे ? के एक ओर तो केंद्र और राज्य सरकार एक पेड़ मां के नाम लगाने का अभियान चला रही है, दूसरी ओर कंपनियां हजारों पेड़ काट रही हैं. प्रशासन जबरदस्ती से लोगों की आवाज दबाने का प्रयास कर रहा है जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा."
अदाणी कंपनी को लगता है कि विरोध बेवजह का है. उसके प्रतिनिधि आलोक चतुर्वेदी के शब्दों में, " 600 मेगावाट क्षमता का सोलर प्लांट लगाने के लिए सरकार ने हमें बंजर और बारानी किस्म की 5, 280.58 बीघा जमीन आवंटित की है. 351 बीघा जमीन कंपनी ने लोगों से खरीदी है. निजी खातेदारी वाली उसी जमीन पर हम सब स्टेशन बना रहे हैं, ग्रामीण जिसका बेवजह विरोध कर रहे हैं. "
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin 11th December, 2024 sayısından alınmıştır.
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