महिला उत्पीड़न और भेदभाव के विभिन्न रूप उभरे और बढ़े हैं। अच्छी बात है कि सबकी रिपोर्टिंग हो रही है। कुछ घटनाएं सुर्खियों में आ रही हैं, कुछ छूट रही हैं। दहेज प्रताड़ना के बाद हत्या, डायन बताकर प्रताड़ना के बाद हत्या या प्रेम के नाम पर उत्पीड़न और हत्या के ट्रेंड में हाल ही में इजाफा हुआ है। यह बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और शोषण के रूपों से इतर है। मूल सवाल सरकार की प्राथमिकता और रूल ऑफ लॉ का है। ऐसा नहीं है कि देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून नहीं बने हैं। आइपीसी की धारा 354 सख्त कर दी गई है। दिसंबर 2012 में निर्भया कांड के बाद जेएस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट की अनुशंसा है, लेकिन डायन के मामले में स्टेट लॉ बहुत कमजोर और लचर है। इसमें पीड़ित महिलाओं को पूरी सुरक्षा नहीं मिल पाती, न्याय नहीं मिल पाता। गांव से महिला बहिष्कृत कर दी जाती है। ऐसी जगहों पर प्रशासन और सरकार खड़ी नहीं होती है। अंतरराष्ट्रीय संधि है, कनवेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट विमेन। इसके तहत भारत सरकार ने भी 1993 में संशोधन किया है। प्रावधान के अनुसार जहां औरत के खिलाफ हिंसा होती है, स्टेट को खड़ा होना चाहिए, मगर ऐसा होता नहीं है। दुष्कर्म या डायन के नाम पर हत्या की वारदात में जब तक थाने में प्राथमिकी दर्ज न हो जाए, सरकारी एजेंसियां सक्रिय नहीं होती हैं। अपराधियों पर लगाम नहीं लगाएंगे, तो घटनाएं बढ़ेंगी ही।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin August 21, 2023 sayısından alınmıştır.
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