इस दुनिया को बिजनेस प्रोफेशनल्स की जरूरत है। इसमें योगदान देने का सबसे अच्छा माध्यम बिजनेस स्कूल हैं। शायद इससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आज इस दुनिया को 'बिजनेस सिटिजंस' की जरूरत है। बिजनेस स्कूलों में छात्रों को ऐसे नागरिक बनाने की भरपूर क्षमता है, लेकिन इसका पर्याप्त ढंग से अब तक दोहन नहीं किया गया है।
पिछले कुछ दशकों में बिजनेस स्कूलों से जो बिजनेस लीडर निकले, उनमें ये संस्थाएं कोई सामाजिक नजरिया या नैतिक दृष्टि पैदा करने में अक्षम रही हैं। इसके उलट, इन संस्थानों से निकले कई ऐसे लोग रहे जो सार्वजनिक जीवन में नैतिक रूप से भ्रष्ट साबित हुए। इसने यह सवाल खड़ा किया कि वास्तव में बिजनेस स्कूलों में क्या पढ़ाया जा रहा है और क्या छूट जा रहा है। हम देखते हैं कि अपनी शैक्षणिक यात्रा के दौरान- चाहे स्नातक की डिग्री या एमबीए की तमाम छात्र अपने व्याक्तित्व में नैतिक विकास की कोई दृश्य उन्नति नहीं प्रदर्शित कर पाते। इसके विपरीत, अकसर हम पाते हैं कि व्यावसायिक शिक्षा लेने के साथ छात्रों का नैतिक जगत और ज्यादा भ्रष्ट हो जा रहा है।
इसकी सीधी जवाबदेही उन बिजनेस शिक्षकों पर है जो आर्थिक आयामों को लेकर अत्यधिक संकीर्ण होते हैं। ज्यादातर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में सारा जोर मुनाफा बढ़ाने के ऊपर रहता है। यह बात अलग है कि नैतिक शिक्षा पर दिनोंदिन जोर बढ़ता जा रहा है। बिजनेस पाठ्यक्रमों के भीतर नैतिक संदेश डालने या फिर स्वायत्त नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू करने तक तमाम कोशिशें की गई हैं, इसके बावजूद ऐसा लगता है कि छात्रों के भीतर नैतिक शिक्षा का पोषण नहीं हो पा रहा है। अब भी सारी कारोबारी शिक्षा का मुख्य जोर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर केंद्रित है, जिसे तकरीबन सभी बिजनेस स्कूलों में एक विशिष्ट गुण माना जाता है।
आज हमें देखना होगा कि कैसे कुछ सर्वश्रेष्ठ बिजनेस स्कूल अपने छात्रों के पेशेवर विकास के साथ-साथ उन्हें 'कारोबारी नागरिक' बनाकर अपनी वैधता को बढ़ा सकते हैं। बिजनेस स्कूलों में चरित्र निर्माण का यह एक ऐसा पहलू है जिसे अब तक साकार नहीं किया गया है और अगर ऐसा होता है तो यह अंतत: सामाजिक विकास में अपना योगदान दे सकता है।
बिजनेस स्कूलों की चुनौती
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin December 11, 2023 sayısından alınmıştır.
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