गणतंत्र के 74वें वर्ष में संसदीय लोकतंत्र शायद नई परिभाषा गढ़ रहा है, करवट बदल रहा है। सत्रहवीं लोकसभा के औपचारिक आखिरी शीतकालीन सत्र में विपक्ष के 141 सांसद ( इन पंक्तियों के लिखे जाने तक) मुअत्तल किए गए, जिनमें लोकसभा के 95 और राज्यसभा के 46 सदस्य हैं। ऐसा यकीनन पहली बार हुआ, जब प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के संसद में सुरक्षा चूक के मामले में बयान देने की मांग पर टकराव इस हद तक जा पहुंचा कि लोकसभा के अध्यक्ष तथा न्यसभा के सभापति ने सांसदों को पूरे सत्र के लिए मुअत्तल करना ही उपाय समझा। करीब 15 सांसदों को बाकी सत्र यानी अगले छोटे-से लेखानुदान सत्र के लिए भी निलंबित कर दिया गया। दोनों ही सदनों के सभापतियों की दलील है कि सांसदों का निलंबन सदन में प्लेकार्ड लहराने और आसन के सामने आकर नारे लगाने के लिए किया गया, जिसे बिजनेस एडवायजरी कमेटी की बैठकों में अमान्य कर दिया गया था। इसके पहले 1987 में इंदिरा गांधी हत्याकांड पर जांच रिपोर्ट जाहिर करने पर विपक्ष के कई सांसदों का निलंबन या 2004-2014 के दौर में विपक्ष के साथ कुछ सत्ता पक्ष के सांसदों के निलंबन का मामला कभी भी इतनी बड़ी संख्या तक नहीं पहुंचा था, न ही वह सरकार से बयान के मामले में था। इसी साल पहले मणिपुर की हिंसक घटनाओं पर प्रधानमंत्री के बयान देने की मांग पर भी कुछ सांसद निलंबित कर दिए गए थे।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin January 08, 2024 sayısından alınmıştır.
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