हरियाणा और पंजाब के शंभू और खन्नौरी बॉर्डर जैसे युद्घ-क्षेत्र में बदल गए। आंसू गैस के गोले दागते ड्रोन और पैलेट गन के छर्रों से घायल किसानों, कई के आंखों की रोशनी जाने की शिकायतें तो थीं, लेकिन 21 फरवरी को खन्नौरी बॉर्डर पर 21 साल के शुभकरण की सिर में गोली लगने से मौत ने स्थितियां बेहद गंभीर कर दीं। हालांकि आंदोलन में सीधे टकराव के 10 दिनों में तीन मौतें हो चुकी हैं और 500 से अधिक किसान जख्मी हो चुके हैं। इसका असर यह हुआ कि आंदोलन की अगुआई कर रही पंजाब की दो किसान यूनियनों किसान मजदूर संघर्ष समिति (स्वर्ण सिंह पंधेर) और जगजीत सिंह डल्लेवाल की भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर)के समर्थन में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से जुड़े देशभर के 100 से अधिक किसान संगठन भी खुलकर सामने आ गए। एसकेएम की 22 फरवरी चंडीगढ़ की बैठक में कई कार्यक्रम का ऐलान किया गया। 26 फरवरी को देशभर में किसानों ने ट्रैक्टर मार्च निकाला गया और 14 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान महापंचायत की घोषणा की गई।
इस तरह एक तरफ किसान यूनियनें सरकार को अपनी एकजुटता का संदेश दे रही हैं। दूसरी तरफ पंजाब और हरियाणा सरकारें एक दूसरे से भिड़ रही हैं। किसानों के मसले सुलझाने की बजाय केंद्र और हरियाणा की भाजपा सरकार की पंजाब की ‘आप’ सरकार से सियासी जंग सुलग रही है। पंजाब में किसान भाजपा नेताओं को घरों में घेर रहे हैं। किसानों और सरकार के बीच गतिरोध के चलते समाधान के फिलहाल कोई आसार नहीं हैं।
केंद्र और हरियाणा सरकार की पूरी कोशिश है कि किसानों को दिल्ली की ओर खिसकने न दिया जाए। हरियाणा के किसान संगठनों को भी आंदोलन से दूर रखने के लिए अंबाला, कुरूक्षेत्र, करनाल, कैथल और जींद के कई गांवों की घेराबंदी कर दी गई है। आंदोलन में शामिल न होने के लिए गुरुद्वारों से ऐलान कराए जा रहे हैं। हरियाणा के किसानों को खन्नौरी और शंभू बॉर्डरों की ओर जाने से रोकने के लिए हर तरह की पुलिस कार्रवाई की जा रही है।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin March 18, 2024 sayısından alınmıştır.
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