यशस्वी जायसवाल के रूप में भारत को क्या दूसरा वीरेंद्र सहवाग मिल गया है? जायसवाल भी स्पिनरों को अधिक देर तक छकाते हैं और सहवाग की तरह खुद के दम पर मुकाबला बदलने का माद्दा रखते हैं। चाहे शतक के करीब हों या दोहरे शतक के, गेंद पाले में आई तो छक्का उड़ाने में उन्हें झिझक नहीं होती। अपने पहले तीन टेस्ट शतकों को ‘डैडी हंड्रेड’ में बदलने वाले यशस्वी का बेखौफ अंदाज बेजोड़ है। उत्तर प्रदेश के गांव से मायानगरी मुंबई, फिर आजाद मैदान से भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम तक उनका सफर उतार-चढ़ाव भरा जरूर रहा। पर जब 22 वर्ष का बाएं हाथ का यह बल्लेबाज परिवार से दूर पहुंच कर टेंट को अपना घर बना रहने लगा, तब उसने मेहनत और लगन से शतकों की झड़ी लगा दी।
दिसंबर 2001 में उत्तर प्रदेश के भदोही में साधारण परिवार में जन्मे यशस्वी बचपन से ही क्रिकेट के प्रति जुनूनी थे। 12 वर्ष की उम्र में यशस्वी के माता-पिता उन्हें मुंबई ले गए। छोटी सी हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले उनके पिता भूपेंद्र जायसवाल और मां कंचन जायसवाल के आग्रह पर एक परिचित डेयरी मालिक ने शुरू में मुंबई में यशस्वी को रहने के लिए छत जरूर मुहैया कराई, लेकिन इस शर्त पर कि युवा खिलाड़ी को दुकान में हाथ बंटाना पड़ेगा। यशस्वी का मन खेल में रमा था, इसलिए रोजाना दुकान पर काम करना मुश्किल होने लगा। लिहाजा, बल्ले और कुछ सामान के साथ यशस्वी की सपनों की खोज फिर शुरू हो गई।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin March 18, 2024 sayısından alınmıştır.
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