जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पांच साल 5 अगस्त को पूरे हो रहे हैं। इस मौके पर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी जश्न मनाने की तैयारी में है। इसे वे ‘एक ऐतिहासिक गलती को दुरुस्त’ करना कहते रहे हैं। वे इस जश्न में कुछ दावे करेंगे, जैसे कश्मीर घाटी में ‘पत्थरबाजी की घटनाएं खत्म’ हो गईं, अलगाववादी गतिविधियां कम हो गईं और पर्यटन में इजाफा हो गया। ऐसे दावों के बीच वे बड़ी आसानी से भुला देंगे कि कश्मीर में छिटपुट गोलीबारी की घटनाएं वापस उभर चुकी हैं, यहां की विधानसभा छह साल से भंग पड़ी है और दो दशक तक शांत रहा जम्मू क्षेत्र पूरी तरह आतंकवाद की चपेट में आ चुका है। हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों में भाजपा ने तय किया था कि वह कश्मीर की तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी। इस फैसले को आड़े हाथों लेते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि भाजपा को डर है कहीं इन सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत न जब्त हो जाए। भाजपा ने लद्दाख में अपना उम्मीदवार उतारा था। वहां वह तीसरे स्थान पर रहा। पार्टी का दावा है कि जम्मू और कश्मीर को बांट कर लद्दाख को उसने कश्मीर के ‘वर्चस्व’ से मुक्त मुक्त करवा दिया है, लेकिन अब लद्दाख से भी पूर्ण राज्य के दरजे की बहाली और उन गारंटियों की आवाजें उठने लगी हैं, जो अनुच्छेद 370 के तहत कभी मिले हुए थे।
लद्दाख में पर्यावरणविद सोनम वांगचुक का अनशन छह महीने से सुर्खियां बना हुआ है। वे छठवीं अनुसूची और पूर्ण राज्य के दरजे की मांग कर रहे हैं। कुछ और नेता इन मांगों के पूरा न होने की सूरत में 5 अगस्त, 2019 के पहले वाली स्थिति बहाल करने को कह रहे हैं। इस बीच आम चुनावों में उत्तरी कश्मीर के नेता इंजीनियर राशिद की जीत हुई, जो यूएपीए के तहत जेल में बंद हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह चुनाव परिणाम 2019 से केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर में लागू की गई नीतियों के खिलाफ यहां के लोगों के असंतोष को दिखलाता है।
बीते बरसों में क्या बदला
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin August 19, 2024 sayısından alınmıştır.
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मराठी महाभारत
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