बलात्कार और हत्या की नृशंसता जिस किस्म की प्रतिक्रियाओं को जन्म देती है, वे केवल नैतिक और राजनैतिक नहीं होतीं। वीभत्सता की तात्कालिक छवियों से, जो दैहिक और मानसिक एहसास पैदा होते हैं, वह भी प्रतिक्रिया ही है। जैसे, फर्श पर पड़ी देह के आसपास पसरे हिंसा के सुराग, आंखों के इर्द-गिर्द जमे खून के थक्के, या अंग-भंग के दृश्य - जहां सब कुछ अपनी कोरी नग्नता में उपस्थित होता है, जबकि कपड़े एक कोने में कहीं फेंके हुए हों। ऐसे दृश्य हमारी सभ्यता की उस आदिम और स्याह स्मृति को जगा देते हैं, जिसमें मर्द-सत्ता लगातार अपने नाखूनों से औरतों के जिस्म और रूह पर जख्मों की इबारत कुरेदती रही है। स्मृति से लेकर वर्तमान तक पसरे ऐसे दृश्यों में केवल एक चीज ही स्थायी हकीकत के रूप में उपस्थित है - एक औरत की बलत्कृत देह।
यह नग्न हकीकत इतनी तगड़ी होती है कि अपने इर्द-गिर्द के तमाम अफसानों पर भारी पड़ जाती है। इसलिए, एक औरत के साथ की गई हिंसा पर एक राष्ट्र के बतौर यदि हम निस्तब्ध नहीं रह जाते, चौंकते नहीं या रोष में नहीं आते, तो सवाल हमारी समूची मनुष्यता पर ही खड़ा हो जाता है। दूसरी ओर यही रोष कुछ ऐसी सच्चाइयों से ध्यान भी भटकाने का काम कर सकता है जो तात्कालिक घटना से बहुत व्यापक होती हैं। ऐसी सच्चाइयों का एक मौन इतिहास और तय भूगोल होता है, जिनसे बच पाना मुश्किल है। मौजूदा संदर्भ में यह दूसरी सच्चाई पश्चिम बंगाल में मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की है।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin September 16, 2024 sayısından alınmıştır.
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शहरनामा - मधेपुरा
बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित, अपनी ऐतिहासिक धरोहर, सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध मधेपुरा कोसी नदी के किनारे बसा है, जिसे 'बिहार का शोक' कहा जाता है।
डाल्टनगंज '84
जब कोई ऐतिहासिक घटना समय के साथ महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा बनकर रह जाए, तब उसे एक अस्थापित लोकेशन से याद करना उस पर रचे गए विपुल साहित्य में एक अहम योगदान की गुंजाइश बनाता है।
गांधी के आईने में आज
फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई के दो पात्र मुन्ना और गांधी का प्रेत चित्रपट से कृष्ण कुमार की नई पुस्तक थैंक यू, गांधी से अकादमिक विमर्श में जगह बना रहे हैं। आजाद भारत के शिक्षा विमर्श में शिक्षा शास्त्री कृष्ण कुमार की खास जगह है।
'मुझे ऐसा सिनेमा पसंद है जो सोचने पर मजबूर कर दे'
मूर्धन्य कलाकार मोहन अगाशे की शख्सियत के कई पहलू हैं। एक अभिनेता के बतौर उन्होंने समानांतर सिनेमा के कई प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम किया। घासीराम कोतवाल (1972) नाटक में अपनी भूमिका के लिए वे खास तौर से जाने जाते हैं। वे मनोचिकित्सक भी हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर उन्होंने कई फिल्में बनाई हैं। वे भारतीय फिल्म और टेलिविजन संस्थान (एफटीआइआइ) के निदेशक भी रह चुके हैं। उनके जीवन और काम के बारे में हाल ही में अरविंद दास ने उनसे बातचीत की। संपादित अंशः
एक शांत, समभाव, संकल्पबद्ध कारोबारी
कारोबारी दायरे के भीतर उन्हें विनम्र और संकोची व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, जो धनबल का प्रदर्शन करने में दिलचस्पी नहीं रखता और पशु प्रेमी था
विरासत बन गई कोलकाता की ट्राम
दुनिया की सबसे पुरानी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में एक कोलकाता की ट्राम अब केवल सैलानियों के लिए चला करेगी
पाकिस्तानी गर्दिश
कभी क्रिकेट की बड़ी ताकत के चर्चित टीम की दुर्दशा से वहां खेल के वजूद पर ही संकट
नशे का नया ठिकाना
कीटनाशक के नाम पर नशीली दवा बनाने वाले कारखाने का भंडाफोड़
'करता कोई और है, नाम किसी और का लगता है'
मुंबई पर 2011 में हुए हमले के बाद पकड़े गए अजमल कसाब के खिलाफ सरकारी वकील रहे उज्ज्वल निकम 1993 के मुंबई बम धमाकों, गुलशन कुमार हत्याकांड और प्रमोद महाजन की हत्या जैसे हाइ-प्रोफाइल मामलों से जुड़े रहे हैं। कसाब के केस में बिरयानी पर दिए अपने एक विवादास्पद बयान से वे राष्ट्रीय सुर्खियों में आए थे। उन्होंने 2024 में भाजपा के टिकट पर उत्तर-मध्य मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। लॉरेंस बिश्नोई के उदय और मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे बातचीत की। संपादित अंश:
मायानगरी की सियासत में जरायम के नए चेहरे
मायापुरी में अपराध भी फिल्मी अंदाज में होते हैं, बस एक हत्या, और बी दशकों की कई जुर्म कथाओं पर चर्चा का बाजार गरम