आजादी की 77वीं सालगिरह की पूर्व संध्या पर जब बारह का बजर खड़का, कोलकाता की सड़कों पर औरतों की समवेत आवाज इन नारों की शक्ल में गूंज पड़ी, ‘‘धिक्कार है’’, ‘‘हमें इंसाफ चाहिए।’’ यहां के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में रात की पारी में तैनात 31 साल की एक जूनियर डॉक्टर के साथ हुए बर्बर बलात्कार और हत्या के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन कई राज्यों तक फैल गया। इस घटना ने एक बार फिर देश में औरतों की सुरक्षा के सवाल को प्रकाश में ला दिया। दिल्ली में 2012 में हुए बलात्कार कांड के बाद ऐसे ही देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद बलात्कार के खिलाफ बहुत कड़े कानून बनाए गए। बावजूद इसके, अब भी औरतों के खिलाफ हिंसा उसी स्तर पर जारी है। यह दिखाता है कि औरतों के जीवन और सुरक्षा के अधिकार को महफूज करने में राज्य पूरी तरह नाकाम हो चुका है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2022 की रिपोर्ट की मानें, तो रोजाना बलात्कार के करीब 90 केस देश भर में रिपोर्ट किए जा रहे हैं। यह स्थिति तब है जब जानकारों के मुताबिक 90 प्रतिशत से ज्यादा यौन हिंसा के केस रिपोर्ट ही नहीं किए जाते।
लैंगिक अधिकार पर काम करने वाले लोगों की लगातार मांग रही है कि भारतीय कानून में वैवाहिक बलात्कार को भी जुर्म माना जाए, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है। हकीकत यह है कि भारत में औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों में एक-तिहाई उनके घरों के भीतर पतियों और रिश्तेदारों द्वारा ही अंजाम दिए जाते हैं। एनसीआरबी का 2014 का आंकड़ा बताता है कि 90 प्रतिशत बलात्कार के मामलों में अपराधी हमेशा औरत का रिश्तेदार, पड़ोसी, नियोक्ता या कोई जानने वाला ही निकला। छोटी बच्चियों की सुरक्षा की हालत तो और खराब है। पास्को कानून के तहत 2022 में रोजाना 22 केस दर्ज कराए गए, जिनके तहत कुल 63,414 अपराध बच्चों के खिलाफ हुए थे, चाहे वह लड़का हो या लड़की। इन मामलों में केवल 3 प्रतिशत ही मुकदमों से होते हुए दंड के चरण तक पहुंच पाए।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin September 16, 2024 sayısından alınmıştır.
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