भारत का कोई भी गांव ऐसा मनहूस नहीं लगता, जैसा शेखपुर गुढ़ा में आकर महसूस होता है। चौतरफा भैंसें और बकरियां यहां चलना दूभर करती हैं। टूटे-फूटे रास्ते गोबर से पटे पड़े हैं। नदी किनारे नावें बंधी हुई हैं। यहां से थोड़ा दाएं मुड़ने पर एक मकान पड़ता है। यह घर उतना नहीं चौंकाता जितना छत पर बना एक कमरा, जो एक मंदिर है। उसके भीतर संगमरमर की बनी एक औरत की प्रतिमा है। उसके हाथ अभिवादन में जुड़े हुए हैं। वह गांव की बेटी थी, जो अब मर कर देवी बन चुकी है। दीवार पर लिखा है, 'दुनिया की चौथी क्रांतिकारी महिला और पूर्व सांसद वीरांगना फूलन देवी जी की यह प्रतिमा 10 अगस्त, 2020 को स्थापित की गई थी।' फूलन को मरे 23 साल हो गए। उनकी जिंदगी की कोई एक सपाट कहानी नहीं है। अलग-अलग लेखकों को उन्होंने अलहदा अफसाने सुनाए। उसी हिसाब से फिल्मों, लेखों, किताबों में कहानियां गढ़ी गईं। हर कहानी एक नई फूलन से हमारा परिचय करवाती है। लेकिन शेखपुर गुढ़ा के लोग उन्हें कैसे याद करते हैं?
रामनरेश कहते हैं, "उनके गुजरने के बाद सब कुछ चला गया, वरना हमारे बच्चों का भविष्य कहीं बेहतर होता।" बगल में खड़े सुमित निषाद के मुताबिक, "हमारा समाज बहुत तरक्की कर सकता था।" जवान हो या बूढ़े आदमी या कि औरत, तमाम गांववाले ऐसा ही अफसोस जताते दिखते हैं। राम बिहारी कहते हैं, "वे पिछड़ों और दलितों के लिए बहुत कुछ करना चाहती थीं, सब अधूरा रह गया।" राजेसरी के मुताबिक वे सबकी मदद कर सकती थीं लेकिन "उन्हें मार दिया गया।'' आखिर क्या बदला है यहां फूलन की मौत के बाद ? उनके चचेरे भाई इंद्रजीत कहते हैं, "अब औरतें पहले से ज्यादा सुरक्षित हैं।" बिहारी इस बात से सहमति जताते हैं। सोभरन पहलवान भी सब कुछ ठीक होने का दावा करते हैं, “अब पुराने दिनों की तरह माहौल नहीं रहा। सब बराबर हैं यहां।" गांव के 107 साल के बुजुर्ग देवी दयाल कहते हैं, “अब तो एक के बदले सौ मारे जाएंगे। औरतों का उत्पीड़न बहुत कम हो गया है।"
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin September 30, 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin September 30, 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
हिंदी सिनेमा में बलात्कार की संस्कृति
बलात्कार की संस्कृति को हिंदी फिल्मों ने लगातार वैधता दी है और उसे प्रचारित किया है
कहानी सूरमाओं की
पेरिस में भारत के शानदार प्रदर्शन से दिव्यांग एथलीटों की एक पूरी पीढ़ी को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली
शेखपुर गुढ़ा की फूलन देवियां
शेखपुर गुढ़ा और बेहमई महज पचास किलोमीटर दूर स्थित दो गांव नहीं हैं, बल्कि चार दशक पहले फूलन देवी के साथ हुए अन्याय के दो अलहदा अफसाने हैं
महाशक्तियों के खेल में बांग्लादेश
बांग्लादेश का घटनाक्रम दक्षिण एशिया के भीतर शक्ति संतुलन और उसमें अमेरिका की भूमिका के संदर्भ में देखे जाने की जरूरत
तलछट से उभरे सितारे
फिल्मों में मामूली भूमिका पाने के लिए वर्षों कास्टिंग डायरेक्टरों के दफ्तरों के चक्कर लगाने वाले अभिनेता आजकल मुंबई में पहचाने नाम बन गए हैं, उन्हें न सिर्फ फिल्में मिल रही हैं बल्कि छोटी और दमदार भूमिकाओं से उन्होंने अपना अलग दर्शक वर्ग भी बना लिया
"संघर्ष के दिन ज्यादा रचनात्मक थे"
फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लगभग सभी कलाकार आज बड़े नाम हो चुके हैं, लेकिन उसके जरिये एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले फैसल मलिक के लिए संघर्ष के दिन कुछ और साल तक जारी रहे। बॉलीवुड में करीब 22 साल गुजारने वाले फैसल से राजीव नयन चतुर्वेदी की खास बातचीत के संपादित अंश:
ग्लोबल मंच के लोकल सितारे
सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल का दौर खत्म होने और मल्टीप्लेक्स आने के संक्रमण काल में किसी ने भी गांव-कस्बे में रह रहे लोगों के मनोरंजन के बारे में नहीं सोचा, ओटीटी का दौर आया तो उसने स्टारडम से लेकर दर्शक संख्या तक सारे पैमाने तोड़ डाले
बलात्कार के तमाशबीन
उज्जैन में सरेराह दिनदहाड़े हुए बलात्कार पर लोगों का चुप रहना, उसे शूट कर के प्रसारित करना गंभीर सामाजिक बीमारी की ओर इशारा
कांग्रेस की चुनौती खेमेबाजी
पार्टी चुनाव दोतरफा होने के आसार से उत्साहित, बाकी सभी वजूद बचाने में मशगूल
भगवा कुनबे में बगावत
दस साल की एंटी-इन्कंबेंसी और परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसे समीकरण साधने के चक्कर में सत्तारूढ़ भाजपा कलह के चक्रव्यूह में फंसी