गांधी के लिए उनके आश्रम पावरहाउस साबित हुए - गांधीवादी आंदोलन की एक नेत्री सरोजिनी नायडू के इस कथन से असहमत होना मुश्किल है। गांधी पांच आश्रमों में रहे और अपने-अपने ढंग से विकसित हुए हजारों कार्यकर्ताओं/नेताओं के लिए भी ये आश्रम खुद को विकसित करने और देश-समाज के काम में हिस्सेदारी की विशिष्ट नर्सरी साबित हुए। भारत में सिविल सोसाइटी आंदोलन की ढंग से शुरुआत कराने में भी यहां बने तीन आश्रमों और फिर उनका अनुसरण करते हुए खड़े हुए सैकड़ों आश्रमों की जबरदस्त भूमिका रही है, हालांकि गांधी को सिविल सोसाइटी के चालू मुहावरों से जोड़ना उचित नहीं है। राष्ट्रीय आंदोलन और दुनिया के उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन के लिए भी यही बात कही जा सकती है।
ये आश्रम आज काफी हद तक निष्क्रिय पड़े हैं, पर अब भी इनके सहारे चलने वाले काम समाज और राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसी के चलते ये प्रेरणा-स्थल भी हैं और दक्षिण अफ्रीका के लिए और उससे भी बढ़कर देश के लिए ये अनमोल धरोहर बने हुए हैं। लाखों लोग गांधी से जुड़े स्थलों को तीर्थ और प्रेरणा की चीज मानकर आज भी वहां अपना शीष नवाने पहुंचते हैं, तो उनमें हजारों लोग आश्रमों को देखने भी जाते हैं, जहां रहकर गांधी ने अपनी सारी ‘लीला’ की और लोग तैयार किए। गांधी ने जो-जो प्रयोग इन आश्रमों में और अपने जीवन में किए वे सचमुच लीला ही लगते हैं और वैज्ञानिक आइंस्टीन का यह कथन बहुत थोड़े समय में ही सार्थक लगने लगा था कि आने वाली पीढ़ियां मुश्किल से भरोसा करेंगी कि कभी हाड़-मांस का कोई ऐसा इंसान भी जमीन पर आया था।
गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सिर्फ हिंदुस्तानियों की लड़ाई लड़ी लेकिन आज वहां के लोग और नेता गांधी पर अपना दावा करते हैं तो इसलिए भी कि गांधी ने उन्हें लड़ना सिखाया, लड़ने के तरीके का उदाहरण पेश किया, लड़ने वालों की फौज जुटाने का तरीका सिखाया। गांधी की लड़ाई में वहां के दो आश्रम बहुत महत्व के थे पर उनसे ज्यादा महत्व की चीज गांधी द्वारा वहां विकसित सत्याग्रह का ‘मंत्र’ साबित हुआ, जो आज तक दुनिया में अन्याय से शांतिपूर्ण लड़ाई में हर किसी के काम आ रहा है।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin October 14, 2024 sayısından alınmıştır.
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