
दक्खिन दिशा से उठी जोरदार हवा क्या विंध्य पार कर सकती है? राजनीति में किसी संभावना से इनकार कोई अहमक ही कर सकता है। वैसे, दक्षिण तो शायद पूरी तरह इस बवंडर की चपेट में है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री, द्रविड़ मुनेत्र कझगम (द्रमुक) के नेता एम.के. स्टालिन के हाथ तो जैसे नया राजनैतिक अमोघ अस्त्र लग गया है। उन्होंने 2026 के बाद संसदीय और राज्य विधानसभाओं के संभावित परिसीमन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के त्रि-भाषा फार्मूले के खिलाफ मोर्चे को विंध्य पार ले जाने की मुहिम तेज कर दी है। उन्होंने 7 मार्च को कई मुख्यमंत्रियों और पूर्व मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी में साझा कार्रवाई समिति (जेएसी) बनाने और उसकी पहली बैठक 22 मार्च को चेन्नै में करने का बुलावा भेजा है। उन्हें उम्मीद है कि दक्षिण के राज्यों केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के अलावा ओडिशा, पंजाब और पश्चिम बंगाल भी जेएसी में शामिल होंगे। इसके लिए वे पार्टी के सांसदों और नेताओं को अन राज्यों में भी भेज रहे हैं और संसद में बजट सत्र की दूसरी बैठक में मुद्दे को उठाने के लिए इंडिया ब्लॉक के नेताओं से बातचीत कर चुके हैं। 10 मार्च को बैठक शुरू होते ही संसद के दोनों सदनों में इन मुद्दों पर हंगामा भी हुआ।
परिसीमन में इन सभी राज्यों के अलावा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश वगैरि में भी संसदीय सीटें घटने की संभावना है। उससे पहले 2 मार्च को उन्होंने अपने राज्य में सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें राज्य की सभी छोटी-बड़ी पार्टियां शामिल हुईं और साझा मोर्चा खोलने को राजी हुईं। अलग सिर्फ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) रही, जिसकी तमिलनाडु में कोई खास पैठ नहीं है। भाजपा की दलील है कि यह बेमतलब बखेड़ा खड़ा करने की कोशिश है। 26 फरवरी को तमिलनाडु के कोयंबत्तूर में पार्टी कार्यालय के उद्घाटन के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि परिसीमन में प्रो-राटा (आनुपातिक) आधार पर दक्षिणी राज्यों में सीटें कम नहीं होने जा रही हैं। लेकिन स्टालिन इसे बेहद अस्पष्ट मानते हैं।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin March 31, 2025 sayısından alınmıştır.
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