
इस साल भारत में अगस्त से अक्तूबर तक अधिकांश क्षेत्र भारी बारिश और बाढ़ की त्रासदी से जूझते रहे. भारत में बाढ़ से हर साल भारी तबाही मचती है. जानमाल का भारी नुकसान होता है. किसानों की फसलें चौपट हो जाती हैं. उन के घरबार बाढ़ के पानी में बह जाते हैं. मवेशी दम तोड़ देते हैं. बाढ़ का पानी उतरने के बाद बुखार, दस्त, भुखमरी से लाखों लोग जूझते हैं. मगर इस विभीषिका से लोगों को बचाने के लिए कभी कोई रोडमैप तैयार नहीं किया गया और न ही बारिश से पहले कोई व्यापक प्रबंध किया जाता है. बाढ़ आती है, गरीबों को तबाह कर के चली जाती है और सरकार 'प्रकृति का कहर' कह कर खुद को अपराधमुक्त कर लेती है.
कुछ खाने के पैकेट, जो गंतव्य तक पहुंचतेपहुंचते सड़ जाते हैं, हैलिकॉप्टरों से बाढ़ग्रस्त इलाके में फंसे लोगों के बीच टपका दिए जाते हैं. फोटो मीडिया में आ जाती है. नावों के जरिए कुछ दवाएं पहुंचा दी जाती हैं. कुछ लोगों को रैस्क्यू कर लिया जाता है और सरकार का काम खत्म. बाकी परेशानियों से गरीब अपनेआप निबट लेंगे, उन्हें हर साल इस समस्या का सामना करने की आदत है, जैसी सोच सरकार की होती है.
पिछले कुछ दशकों से मध्य भारत के लोग मूसलाधार बारिश और बादल फटने की घटनाओं का सामना कर रहे हैं. भारत में बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल, असम, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब ऐसे राज्य हैं जहां बाढ़ का असर ज्यादा होता है. लेकिन इस बार तो सूखे के लिए जाना जाने वाला राजस्थान भी बाढ़ की चपेट में आ गया. उत्तर भारत में इस साल अक्तूबर माह में भारी बारिश हुई, जगहजगह बादल फटने की घटनाएं हुईं और अनेक इलाके जलमग्न हो गए, जबकि पहले के समय में मानसून सितंबर के पहले माह तक वापस लौट जाता था.
मुंबई के लिए हर साल बारिश आफ बन कर आती है. शहर के दर्जनभर से ज्यादा इलाकों में इतना ज्यादा जलभराव होता है कि लोग अपने घरों में दुबकने के लिए मजबूर हो जाते हैं. तकरीबन पूरे शहर में नावें चलने लगती हैं. मानसून आने से पहले हर बार सरकार यह दावा करती है कि इस बार किसी इलाके में जलजमाव नहीं होगा लेकिन वे सब झूठे ही साबित होते हैं. अब की मानसून में पूर्वोत्तर राज्य असम और मेघालय में भी बाढ़ का कहर लगातार जारी रहा.
Bu hikaye Sarita dergisinin November First 2022 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Sarita dergisinin November First 2022 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap

धर्म पर बनी 5 बौलीवुड फिल्में
फिल्ममेकर्स कुछ नया और बड़ा करने के लिए धार्मिक फिल्मों का सहारा लेते हैं. ये दर्शकों के बीच खूब पसंद भी की जाती हैं. बौलीवुड में ऐसी कुछ फिल्में हैं जो काफी विवादों में रहने के बावजूद छप्परफाड़ कमाई कर चुकी हैं.

क्या विचहंट का शिकार हो रहे रणवीर और समय रैना
इंटरनैट के जमाने में कंटेंट का क्या कोई देश है? क्या आप सोशल मीडिया से पारिवारिकता की उम्मीद लगा कर बैठे हैं? सोशल मीडिया पहले ही गटर बन चुका है. सब के पास चॉइस है अपनी पसंद का कंटेंट देखने की और न देखने की. फिर रणवीर और समय रैना से कैसी उम्मीद ?

झूठा दंभ
नौकरी को हलके में लेने वाले सुकेश के साथ एक दिन कुछ ऐसा घटित हुआ कि उस के पास सिवा पछताने के और कुछ नहीं बचा था.

बौडी आप की हक आप का
एकदूसरे के लिए प्रेम दर्शाना गलत नहीं है, लेकिन पब्लिक प्लेस में कई लोग अश्लीलता की हद पार कर देते हैं, जिस से आसपास के लोग अनकंफर्टेबल हो जाते हैं. ऐसे में लड़कियों को खास ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि पब्लिक प्लेस में ऐसी हरकतों के वीडियोज सैकंड्स में वायरल हो सकते हैं या वीडियोज बना कर उन लोगों को ब्लैकमेल किया जा सकता है.

उर्दू से नफरत क्यों
किसी भाषा को पैदा होने, बढ़ने और समृद्ध होने में सदियों का समय लगता है. और किसी भाषा को मिटा कर कोई समाज या कोई देश कभी समृद्ध नहीं हुआ. भाषा को औजार बना कर दो संप्रदायों के बीच नफरत पैदा करने वालों को कोई बताए कि कठमुल्लापन उर्दू की देन नहीं, बल्कि सरकार की घटिया शिक्षा नीतियों की देन है, जो देश के बच्चों को एकसमान बेसिक शिक्षा तक उपलब्ध कराने में नाकाम है.

वोटोक्रेसी नहीं डैमोक्रेसी चाहिए
लोकतंत्र वोट देने और लेने तक सीमित रह गया है. जनता, जिसे कभी सत्ता का मुख्य बिंदु माना जाता था, अब सिर्फ एक दिन भूमिका निभाती है. वोटोक्रेसी व डैमोक्रेसी का फर्क धुंधलाता जा रहा है. आइए समझते हैं कि कैसे लोकतंत्र का रूप बदलते वक्त के साथ अपने माने खो रहा है. दि

प्रकृति की मौत और भगवा होता ओडिशा
है तो यह सीधीसादी कौम्पलैक्स लवस्टोरी और उस के बाद प्रेमी द्वारा प्रेमिका को ब्लैकमेल व प्रताड़ित करने की एक दुखद दास्तां जिस पर अब भगवा इबारत लिखी जा रही है.

सोसाइटीज में पैर पसारते मंदिर
आजकल हर सोसाइटी में मंदिर होना आम बात हो चली है. इस की आड़ में सोसाइटी में रहने वालों से मनमाना चंदा और भांतिभांति के कार्यक्रमों के नाम पर पैसे ऐंठे जा रहे हैं. लाउडस्पीकर का शोर और फुजूल का हल्लागुल्ला तो अलग बात है.

भाभी, न मत कहना
सुवित को अपने सामने देख समीरा के होश उड़ गए. अपने दिल को संभालना मुश्किल हो रहा था उस के लिए. वक्त कैसा खेल खेल रहा था उस के साथ?

शादी से पहले जब न रहे मंगेतर
शादी से पहले यदि किसी लड़की या लड़के की अचानक मृत्यु हो जाए तो परिवार वालों से अधिक ट्रौमा उस के पार्टनर को झेलना पड़ता है, उसे गहरा आघात लगता है. ऐसे में कैसे डील करें.