हमारे यहां हर लड़की औरत आएदिन बौडीशेमिंग के चलते ट्रोलिंग का शिकार होती रहती है. इसी के चलते लड़कियों को अपना मोटापा अपने सपनों को पूरा करने में बाधक लगने लगता है. जबकि मोटापे यानी कि बौडी शेमिंग का सपनों से या इंसान की प्रतिभा व कार्यक्षमता से कोई संबंध नहीं है.
इसी बात को रेखांकित करने के लिए फिल्मकार सतराम रमानी फिल्म 'डबल एक्सएल' ले कर आ रहे हैं, जिस में सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरैशी की अहम भूमिकाएं हैं. सतराम रमानी ने इस से पहले सुरक्षित सैक्स और कंडोम जैसे टैबू वाले विषय पर 'हैलमेट' जैसी फिल्म बना कर शोहरत बटोरी थी. यहां प्रस्तुत सतराम रमानी से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश :
फिल्मकार सतराम रमानी से पूछा कि उन का फिल्मों के प्रति झुकाव कैसे हुआ, तो वे बताते हैं, “मेरे घर का कोई भी सदस्य फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा नहीं है. मैं सिंधी समुदाय से हूं. मेरे पिता का बिजनैस है. लेकिन मेरे पिताजी का थिएटर की तरफ काफी झुकाव रहा है तो वे मुझे बचपन से ही मराठी थिएटर देखने के लिए ले जाया करते थे. जिस के चलते मेरे अंदर थिएटर यानी नाटक देखने व कुछ सीखने की इच्छा बलवती होती रही है. मुझे हर नाटक में एक नया क्रिएशन देख कर अच्छा लगता था. इस तरह मेरा प्रेरणास्त्रोत कहीं न कहीं थिएटर ही रहा."
फिल्म निर्देशन के लिए लिए ट्रेनिंग को ले कर सतराम बताते हैं, "जलगांव से मैं पुणे पहुंचा, जहां एमआईटी कालेज है. इस कालेज में फिल्म मेकिंग का कोर्स भी होता है. जलगांव में तो फिल्म मेकिंग का जिक्र भी नहीं होता था. उस वक्त तक तो लोगों को यह भी नहीं पता था कि फिल्म मेकिंग भी एक प्रोफैशन हो सकता है पर अब धीरेधीरे हालात बदल रहे हैं. उन दिनों सोशल मीडिया भी नहीं था. जब मैं ने। कुछ रिसर्च की तो मेरी समझ में आया कि मैं एमआईटी जौइन कर लूं तो शायद मेरा कुछ हो सकता है."
Bu hikaye Sarita dergisinin November Second 2022 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Sarita dergisinin November Second 2022 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.