
हाल के कुछ सालों में देश में जिस तरह से बिना किसी तैयारी के कानून बनाए और लागू किए जा रहे हैं उस से साफ यह लगता है कि यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी में भी कोई नया रास्ता नहीं होगा. मिसाल के तौर पर, कश्मीर में अनुच्छेद 370, कृषि कानून, सीएए यानी सिटिजन अमैंडमैंट एक्ट और एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर फौर सिटिजन को ले कर जिस तरह सरकार ने किया उस से स्पष्ट होता है कि यूनिफौर्म सिविल कोड यानी यूसीसी में न कुछ यूनिफौर्म होगा, न सिविल होगा, न कोड होगा बल्कि यह ढाक के तीन पात ही होगा.
अगर यूनिफौर्म सिविल कोड बनता है तो उस में नया कुछ नहीं होगा. उस में सभी जातियों और धर्मों के विवाह कानून को जारी रखते हुए 2 बदलाव होंगे. पहला, शादी के समय पहली पत्नी या पति या तो जिंदा न हो या दोनों के बीच कानूनन अलगाव हो चुका हो. दूसरा, तलाक या संबंध विच्छेद के बारे में यह कहा जाएगा कि इस का फैसला सिविल कोर्ट करेगी. जीएसटी को ले कर सरकार ने यही किया है. एक देश एक कानून के नाम पर जीएसटी कानून बना जिस में 10 तरह के अलगअलग नियम बना दिए गए.
असल बात यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट में विवाह के लिए धार्मिक पक्ष को मान्यता नहीं दी गई है. इस की वजह से यूसीसी के जरिए इस कानून को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास किया जा रहा है. यूनिफॉर्म सिविल कोड यूसीसी में विवाह के धार्मिक पक्ष को बचाने का काम होगा, सो, वह लौलीपौप बन कर रह जाएगा, यूनिफॉर्म नहीं रहेगा. जैसे, जीएसटी एक ही दर का एक टैक्स नहीं है.
ऐसे में जरूरी यह है कि स्पैशल मैरिज एक्ट ही सब से उपयोगी होगा जिस में सभी जातियों और धर्मों के लिए एक सा नियमकानून होगा. यूसीसी को ले कर जिस तरह की कवायद उत्तराखंड की सरकार कर रही है उसे देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूसीसी के नाम पर सरकार क्या करने वाली है?
Bu hikaye Sarita dergisinin December First 2022 sayısından alınmıştır.
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