लोकतंत्र में विपक्षी दल को प्रतिपक्ष कहा जाता है. यह प्रतिपक्ष भी सरकार का हिस्सा होता है. संविधान ने सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष को भी बराबर का महत्त्व दिया है. विधानसभा की बात हो या लोकसभा की, विपक्ष के नेता सदन को उतना ही महत्त्व दिया जाता है जितना सत्ता पक्ष के नेता सदन का.
प्रतिपक्ष के नेता को भी सरकारी सुविधाएं प्राप्त होती हैं. इस का अर्थ यह होता है कि प्रतिपक्ष के नेता की भी भूमिका तय होती है. वह बजट सत्र में आने वाले बिलों पर चर्चा कर सकता है. शून्य काल यानी 'जीरो आवर' में वह प्रदेश की समस्याओं को उठा सकता है. सदन में नेता प्रतिपक्ष को भी अहम स्थान हासिल होता है.
ऐसे में विपक्ष की भूमिका सत्ता पक्ष जितनी ही अहम हो जाती है. विपक्ष का मतलब केवल सदन में होहल्ला करना या सदन का बायकौट करना ही नहीं होता. उसे अपने तर्कों से सत्ता पक्ष को सदन में व धरना प्रदर्शन से सड़क पर घेरना चाहिए.
राजनारायण से सीखें आज के विपक्षी नेता
गैरकांग्रेसवाद का नारा देने वाले जय प्रकाश नारायण की बात हो या समाजवादी नेता डाक्टर राममनोहर लोहिया की, इंदिरा गांधी को इस कदर परेशान कर दिया था कि वे इमरजैंसी लगाने जैसे फैसले लेने के लिए मजबूर हो गईं.
1971 में कांग्रेस की नेता इंदिरा गांधी सब से ताकतवर नेता बन कर उभरी थीं. बंगलादेश विजय के रथ पर सवार इंदिरा गांधी को 'लेडी आयरन' कहा जाता था. राजनारायण ने अपने संघर्ष के दम पर इंदिरा गांधी को घुटनों पर ला दिया था.
आज विपक्ष में उस ताकत और एकजुटता का अभाव है. 2014 से 2023 तक 9 साल होने को आ रहे हैं और विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा है. 9 सालों में विपक्ष ने नरेंद्र मोदी पर तमाम तरह के आरोप लगाए लेकिन उस लड़ाई को वह उस तरह से अंजाम तक नहीं पहुंचा पाया जैसे राजनारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. आज के नेताओं के मुकाबले राजनारायण के पास संसाधनों का अभाव था लेकिन वे अपनी हिम्मत से आगे बढ़ते रहे.
विपक्ष के सामने ढेर हुईं ताकतवर इंदिरा गांधी
Bu hikaye Sarita dergisinin April First 2023 sayısından alınmıştır.
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