मृत्युभोज जीमने से पहले इस नन्हे से बालक पर गौर कीजिए. थाली पर बैठने से पहले इस बच्चे की मासूमियत पर अपनी नजर दौड़ाइए, फिर खाने का निवाला मुंह में लीजिए. इस बच्चे की 5 साल बाद की तसवीर देखिए, जब यह अपनी मां की मेहनत से तैयार की गई फसल को बेच कर आप के एक वक्त के भोजन का ब्याज चुकाएगा.
स्कूल तो दूर की बात, यह दिनरात खेत में धूप में पसीने से तरबतर फटे कपड़ों से शरीर को ढकते हुए आप के एक वक्त के भोजन के एकएक कोर का हिसाब करेगा. आप का एक दिन का पेट एक मासूम को जिंदगीभर भूखा रख देगा. यह बड़े अफसोस की बात है. आप खुद को पढ़ालिखा सभ्य इंसान मानते होंगे, मगर आप ही समाज के लोग इस बच्चे को कर्ज में दबा कर तिलतिल मरने पर मजबूर कर रहे हैं.
इस मासूम बच्चे की तरह ही उन तमाम बच्चों को मृत्युभोज कराना पड़ता है जिन के मांबाप अचानक किसी ऐक्सीडेंट या बीमारी के चलते अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं. मांबाप की मौत के बाद असहाय, रोतेबिलखते बच्चों को समाज व परिवार के सहारे व संबल की जरूरत होती है जबकि उन पर मृत्युभोज का बोझ लाद दिया जाता है, चाहे वे जमीन बेच कर मृत्युभोज कराएं या कर्जा ले कर.
एक सच्ची दास्तान
इसी तरह की एक सच्ची दास्तान से गुजरे हैं प्रेमसिंह सियाग, जो आज दिल्ली एम्स हौस्पिटल में नर्सिंग ऑफिसर के पद पर सेवारत हैं और राजस्थान के जोधपुर के ग्रामीण इलाके के रहने वाले हैं.
वे कहते हैं, "मैं डेढ़ साल का था और मेरे पिताजी गुजर गए. समाज के सफेदपोश लोगों ने मिल कर मृत्युभोज किया. मेरी विधवा मां ने दशकों तक कर्ज के बोझ को ढोया. हम 2 भाई व एक बहन का पेट भरने के लिए रात में खुद के खेत में काम करती व दिन में मजदूरी के लिए दूसरों के खेतों में काम करती थी.
"बड़े भाई की पढ़ाई छूट गई. भाई 14 साल की उम्र में स्टील फैक्ट्री में एक मजदूर बन गया. हम दोनों बहनभाई स्कूल जाने लगे. अकाल पड़ गया. घर में कुछ खाने को नहीं था. आसपड़ोस में उम्मीदभरी नजरों से देखा, मगर मायूसी मिली. दोनों बहनभाई ननिहाल उम्मीद ले कर गए थे मगर उन की हालत भी ज्यादा ठीक नहीं थी.
Bu hikaye Sarita dergisinin July-I 2023 sayısından alınmıştır.
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