मायावती और उन का दलित वोटबैंक राजनीति के लिए अबूझ पहेली जैसा है. 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से दलित वोट भारतीय जनता पार्टी के पाले की तरफ आ गया था. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कहा कि 'मायावती सपा को हराने के लिए उम्मीदवार खड़ा करती हैं.'
हाल के घोसी उपचुनाव में दलित वोट समाजवादी पार्टी की तरफ झुका तो भाजपा हार गई. मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ा था. यह राजनीति में मायावती का प्रभाव ही है कि उन की पार्टी चुनाव लड़े या न लड़े लेकिन जीत और हार को प्रभावित जरूर करती है.
जब सारा देश नए संसद भवन के उद्घाटन के समय जनजाति समूह से आने वाली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की अनुपस्थिति पर अचंभित था और नरेंद्र मोदी पर आरोप लगारहे थे कि राष्ट्रपति से संसद भवन का उद्घाटन न करा कर दलितों, अछूतों और वनवासियों को अपमानित किया गया, तब एक बड़ी दलित नेता नरेंद्र मोदी के साथ पूरे जोरशोर से खड़ी थी, वह थी मायावती दलितों की मसीहा कही जाने वाली जिसे दलितों के सम्मान की फिक्र नहीं रह गई है.
बहनजी के नाम से मशहूर जानी जाने वाली वारिस बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम के नारे 'तिलक तराजू और तलवार, इन को मारो जूते चार' से गंगायमुना में बहा चुकी हैं. दलित समुदाय की अकेली दमदार नेता रही बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा मायावती आज इतनी क्यों भयभीत हैं? यह एक पहेली है जो उन के जीवन के बारे में जानने पर भी नहीं सुलझती.
मायावती ने क्यों 'बहुजन' जो असल में दलितों आदिवासियों व सभी पिछड़ों यानी शूद्रों के लिए कांशीराम का शब्द था, अब सर्वजन के नाम पर सिर्फ ब्राह्मणजन का रूप ले चुका है, अपनाया.
बड़ी बात यह है कि समर्पण के बावजूद उन्हें आज भी कांशीराम की वारिस होने के नाते काफी वोट दलितों के मिल रहे हैं और अब इन वोटों का लाभ भारतीय जनता पार्टी को हो रहा है क्योंकि गैर भाजपाई वोट बंट जाते हैं.
Bu hikaye Sarita dergisinin October First 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Sarita dergisinin October First 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.