फिल्म इंडस्ट्री के अब तक के सफर में हीरोइनों ने अपना सौ फीसदी योगदान दिया है. फिर चाहे वह नरगिस, वहीदा रहमान, मधुबाला, आशा पारेख, वैजयंती माला आदि पुरानी हीरोइनें हों या श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, जयाप्रदा, जूही चावला, काजोल आदि 90 के दशक की हीरोइनें हों, अब तक के फिल्मी इतिहास में इन सभी नामीगिरामी हीरोइनों ने अपनी अपनी अलग पहचान बनाई है और एक से एक बेहतरीन फिल्में दी हैं.
बावजूद इस के, फिल्म इंडस्ट्री को हीरोप्रधान इंडस्ट्री कहा गया. बेहतरीन अदाकारों के बावजूद हीरोइन का पारिश्रमिक हीरो से हमेशा कम रहा, भले ही कोई फिल्म हीरोइनप्रधान ही क्यों न हो. बाकी फिल्मों में भी हीरोइनें सिर्फ शोपीस वाले रोल में ही नजर आती थीं. उन के हिस्से में दोतीन रोमांटिक सीन, एकदो गाने और एकदो इमोशनल सीन ही होते थे. इतना ही नहीं, खूबसूरती और अभिनय की बेमिसाल मूरत होने के बावजूद हीरोइन का फिल्मी कैरियर बहुत ही छोटा होता था, जिस के चलते 10 साल के कैरियर के बाद ही उन को मां, भाभी और बहन के किरदार औफर होने लगते थे. इसी वजह से कई सारी हीरोइनें बकवास रोल करने के बजाय फिल्मों से संन्यास लेना बेहतर समझती थीं.
कई सारी जानीमानी अभिनेत्रियों ने बेकार रोल करने के बजाय घर बैठना ज्यादा उचित समझा. लेकिन आज काफीकुछ बदल गया है. आज हीरोइनों के लिए खासतौर से रोल लिखे जा रहे हैं. बड़ा परदा, छोटा परदा या ओटीटी प्लेटफौर्म हो, आज खासतौर पर हीरोइनें दमदार किरदार निभा रही हैं जिस के चलते बौलीवुड हीरोइनें सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही हैं.
Bu hikaye Sarita dergisinin November First 2023 sayısından alınmıştır.
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कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
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बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.
उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें
ब्रेकअप के बाद सब का अपना अलग हीलिंग प्रोसैस होता है लेकिन खुद से प्यार करना और समय देना सब से जरूरी होता है.
इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
जिन परिवारों में इकलौता बच्चा होता है वे बच्चे की सुरक्षा के प्रति बहुत सजग रहते हैं. उसे हर वक्त अपनी निगरानी में रखते हैं. लेकिन बच्चे की अत्यधिक सुरक्षा उस के भविष्य और कैरियर को तबाह कर सकती है.
मेले मामा चाचू बूआ की शादी में जलूल आना
शादी कार्ड में जिन के द्वारा लिखवाया गया होता है कि 'मेले मामा/चाचू की शादी में जलूल आना' उन प्यारेप्यारे बच्चों के लिए सब से बड़ी सजा हो जाती है कि वे देररात तक जाग सकते नहीं.
गलत हैं नायडू स्टालिन औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं
महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
1990 के बाद का दौर भारत में भारी उथलपुथल भरा रहा. एक तरफ नई आर्थिक नीतियों ने कौर्पोरेट को नई जान दी, दूसरी तरफ धर्म का बोलबाला अपनी ऊंचाइयों पर था. धार्मिक और आर्थिक इन बदलावों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया, जिस का असर संसद पर भी पड़ा.
न्याय की मूरत सूरत बदली क्या सीरत भी बदलेगी
भावनात्मक तौर पर 'न्याय की देवी' के भाव बदलने की सीजेआई की कोशिश अच्छी है, लेकिन व्यवहार में इस देश में निष्पक्ष और त्वरित न्याय मिलने व कानून के प्रभावी अनुपालन की कहानी बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं है.