लखनऊ के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र में आनंदेश्वर अग्रहरि उर्फ आनंद हि और जान्हवी अग्रहरि उर्फ संध्या पतिपत्नी के रूप में रह रहे थे. 2008 में दोनों ने प्रेमविवाह किया था. दोनों के 2 बेटे तनिष्क और शौर्य थे. तनिष्क मूकबधिर था. आनंद फिजियोथेरैपिस्ट के रूप में काम करता था. पतिपत्नी दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे.
2019 में झगड़े को ले कर मसला पुलिस तक गया था. हर बार समझौता हो जाता था. 4 दिसंबर को पहला झगड़ा हुआ. आनंद जुआ खेलने और नशे का आदी था. कुछ माह से वह अपना काम भी नहीं कर रहा था. ऐसे में पैसों को ले कर पतिपत्नी में झगड़ा बढ़ गया था.
आनंद के बड़े बेटे तनिष्क ने पुलिस को लिख कर और साइन लैंग्वेंज (इशारों से अपनी बात बताना) के जरिए पुलिस को बताना चाहा तो पुलिस उस बात को समझ नहीं पाई थी. ऐसे में एडीसीपी चिरंजीवी नाथ सिन्हा ने साइन लैग्वेंज की जानने वाली प्रिंसिपल को बुलवाया. उन के साथ बातचीत कर के तनिष्क ने घर का नक्शा बनाते हुए लिख कर समझाया कि 'डैड ने पैकेट खोल कर नशीला पदार्थ बच्चों और पत्नी को धोखे से पिला दिया.'
जब बच्चे बेहोश हो गए तो आनंद ने बेहोश पत्नी संध्या पर चाकू से 22 वार कर के मार दिया. इस के कुछ देर बाद शौर्य उठा तो उस ने अपनी नानी को फोन पर सारी जानकारी दी. आनंद फरार हो चुका था. इस तरह से आनंद और संध्या की प्रेम कहानी का अंत हो गया. अगर संध्या ने पहली हिंसा पर ही विरोध कर के अलग रहने का फैसला किया होता तो शायद वह जिंदा होती.
इसी तरह की दूसरी घटना लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर रायबरेली जिले की है. मिरजापुर जिले के फरदहा घाटमपुर निवासी डा. अरुण सिंह लालगंज, रायबरेली स्थित रेल डब्बा कारखाना के अस्पताल में 6 साल से नौकरी कर रहा था. उस के साथ पत्नी अर्चना, बेटी अदीवा और आरव रहता था. रहने के लिए टाइप-4 आवास उन को मिला था. वह कुछ दिन ड्यूटी पर नहीं गया तो अस्पताल के कर्मचारी उस को देखने घर गए. घर के दरवाजे पर ताला लगा था. दूसरे दरवाजे अंदर से बंद थे. खिड़की से झांक कर देखने पर पता चला कि घर में सब मरे पड़े थे.
Bu hikaye Sarita dergisinin January Second 2024 sayısından alınmıştır.
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