रश्मि मां नहीं बन पाई, क्योंकि उस का बारबार मिसकैरिज हो जाता था. उन्होंने कई बार डाक्टर से सलाह ले कर दवाइयां लीं, लेकिन वह मां नहीं बनी. अंत में रश्मि ने अपनी जिंदगी को अपनी तरीके से जीना शुरू किया, जिस में उस ने नौकरी कर ली और अपनी हौबी के करम करने शुरू किए. आज वह खुश है, लेकिन 50 साल की इस उम्र में भी वह जब भी अपने पति के साथ किसी गेटटुगेदर में जाती है, लोगों को फुसफुसाते हुए सुनती है या अपने लिए दयाभाव को जाहिर होते पाती है, जो हालांकि, पहले की अपेक्षा कम हुआ है. उन दोनों की इस बिंदास जीवनशैली से दूसरे कपल्स प्रेरित भी होते हैं, जो रश्मि को अच्छा लगता है.
असल में जब कपल मातापिता बनते हैं तो उन की जिंदगी बच्चों के पालनपोषण में गुजर जाती है. ऐसे में बहुत कम पतिपत्नी होते हैं जो एकदूसरे की जिंदगी का ध्यान रख पाते हैं जबकि देखा गया है कि निसंतान पतिपत्नी का आपसी प्यार और उन की बौंडिंग बहुत अच्छी होती है. अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री सायरा बानो की आपसी बौंडिंग इस का एक उदाहरण है. उन की कोई संतान नहीं थी, लेकिन उन दोनों का आपसी प्यार बहुत स्ट्रॉंग था.
एक बार अभिनेत्री सायरा बानो ने कहा भी था कि मेरे अपने बच्चे भले ही नहीं हैं लेकिन मेरे आसपास बहुत सारे बच्चे हैं जिन को मैं ने अपने परिवार में बड़ा होते हुए देखा है. उन में केवल परिवार ही नहीं, बल्कि हमारे घर के हैल्पर भी हैं. हम दोनों को कभी नहीं लगा कि हमारे बच्चे नहीं हैं.
चौइस कपल्स की
असल में मां बनना एक महिला के लिए नैसर्गिक प्रक्रिया है, लेकिन कई बार कुछ कारणों से महिला मां नहीं बन पाती. सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी महिला के प्रति समाज और परिवार आजकल हीनभावना दिखाने की अपेक्षा दयाभाव ज्यादा दिखाते हैं. अगर कपल संभ्रांत परिवार का हो तो फिर क्या ही कहने. लोगों की हमदर्दी अनचाहे ही उन पर आ गिरती है, मसलन उन के बाद में उन की प्रौपर्टी का मालिक कौन होगा, व्यवसाय को कौन चलाएगा आदि कई प्रश्नों का सामना उन्हें करना पड़ता है, जो उन कपल्स को कई बार खराब भी लगता है.
Bu hikaye Sarita dergisinin June First 2024 sayısından alınmıştır.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.
शादी से पहले बना लें अपना आशियाना
कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
एमआरपी का भ्रमजाल
एमआरपी तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.
कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला भड़ास या साजिश
कनाडा के हिंदू मंदिरों पर कथित खालिस्तानी हमलों का इतिहास से गहरा नाता है जिसकी जड़ में धर्म और उस का उन्माद है. इस मामले में राजनीति को दोष दे कर पल्ला झाड़ने की कोशिश हकीकत पर परदा डालने की ही साजिश है जो पहले भी कभी इतिहास को बेपरदा होने से कभी रोक नहीं पाई.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
2004 में कांग्रेस नेतृत्व वाली मिलीजुली यूपीए सरकार केंद्र की सत्ता में आई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ संसद से सामाजिक सुधार के कई कानून पारित कराए, जिन का सीधा असर आम जनता पर पड़ा. बेलगाम करप्शन के आरोप यूपीए को 2014 के चुनाव में बुरी तरह ले डूबे.
अमेरिका अब चर्च का शिकंजा
दुनियाभर के देश जिस तेजी से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में आ रहे हैं वह उदारवादियों के लिए चिंता की बात है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने और बढ़ा दिया है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत दरअसल चर्चों और पादरियों की जीत है जिस की स्क्रिप्ट लंबे समय से लिखी जा रही थी. इसे विस्तार से पढ़िए पड़ताल करती इस रिपोर्ट में.