2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के लिए अच्छा अवसर था, अगर मध्य प्रदेश और बिहार में कांग्रेस या उस का गठबंधन 25 से 30 सीटें जीत जाता तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोका जा सकता था. उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार को ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप से जोड़ कर देखा जा सकता है. भाजपा को उत्तर प्रदेश में अति आत्मविश्वास था जिस की वजह से पार्टी चुनाव मैनेजमैंट में चूक गई. विरोधी दल ईवीएम पर जिस तरह से सवाल उठा रहे हैं ऐसे में ईवीएम से होने वाली गड़बड़ी को नजरअंदाज करना कठिन है.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की सामाजिक संरचना करीबकरीब एकजैसी है. इन के चुनावी मुद्दे भी कमोबेश यूपी वाले ही थे. ऐसे में यूपी में इतनी करारी हार मिली और मध्य प्रदेश, बिहार में भाजपा को तगड़ी बढ़त मिली. यूपी में गच्चा कैसे खा गए, यह बात हर किसी को समझ नहीं आ रही ? क्या भाजपा यूपी के मूड को पढ़ने में चूक गई? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर केंद्र सरकार का भरोसा ज्यादा था? अपनी जीत के बाद भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव यह भरोसा करने को तैयार नहीं हैं कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं हो सकती?
लोकसभा चुनावों में जो परिणाम आए उन्होंने कांग्रेस की चुनौतियों को बढ़ा दिया है. देश की जनता ने कांग्रेस को 99 सीटें दे कर बता दिया है कि उस का कांग्रेस पर कितना भरोसा है. इंडिया ब्लौक को 234 सीटें मिली हैं जो सरकार बनाने वाली एनडीए की 292 सीटों से 58 सीटें ही कम हैं. इस बार सत्ता और विपक्ष की ताकत बराबर की है. ऐसे में कांग्रेस और इंडिया ब्लौक की जिम्मेदारी है कि वह सत्ता पक्ष को मनमानी नहीं करने दें. इस के लिए सब से पहले तो आपसी एकजुटता रखनी है. आपस में योजना बना कर सत्ता पक्ष की कमजोरियों पर हमला करना है.
संसद में ताकतवर हुआ गांधी परिवार
राहुल गांधी ने रायबरेली लोकसभा सीट अपने पास रखी है और केरल की वायनाड सीट से इस्तीफा दे दिया है. वहां से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ेंगी. अब लोकसभा में गांधी परिवार से राहुल और प्रियंका होंगे तो राज्यसभा में सोनिया गांधी सदस्य हैं. आजादी के बाद पहली बार गांधी परिवार के 3 सदस्य संसद में साथ होंगे. इस से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी. अल्पमत वाली एनडीए सरकार के लिए मनमानी करना आसान नहीं होगा.
Bu hikaye Sarita dergisinin July First 2024 sayısından alınmıştır.
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कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.
उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें
ब्रेकअप के बाद सब का अपना अलग हीलिंग प्रोसैस होता है लेकिन खुद से प्यार करना और समय देना सब से जरूरी होता है.
इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
जिन परिवारों में इकलौता बच्चा होता है वे बच्चे की सुरक्षा के प्रति बहुत सजग रहते हैं. उसे हर वक्त अपनी निगरानी में रखते हैं. लेकिन बच्चे की अत्यधिक सुरक्षा उस के भविष्य और कैरियर को तबाह कर सकती है.
मेले मामा चाचू बूआ की शादी में जलूल आना
शादी कार्ड में जिन के द्वारा लिखवाया गया होता है कि 'मेले मामा/चाचू की शादी में जलूल आना' उन प्यारेप्यारे बच्चों के लिए सब से बड़ी सजा हो जाती है कि वे देररात तक जाग सकते नहीं.
गलत हैं नायडू स्टालिन औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं
महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
1990 के बाद का दौर भारत में भारी उथलपुथल भरा रहा. एक तरफ नई आर्थिक नीतियों ने कौर्पोरेट को नई जान दी, दूसरी तरफ धर्म का बोलबाला अपनी ऊंचाइयों पर था. धार्मिक और आर्थिक इन बदलावों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया, जिस का असर संसद पर भी पड़ा.
न्याय की मूरत सूरत बदली क्या सीरत भी बदलेगी
भावनात्मक तौर पर 'न्याय की देवी' के भाव बदलने की सीजेआई की कोशिश अच्छी है, लेकिन व्यवहार में इस देश में निष्पक्ष और त्वरित न्याय मिलने व कानून के प्रभावी अनुपालन की कहानी बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं है.