भाग-4
इस श्रृंखला में 1947 के बाद की सरकारों की नीतियों और उन के दैनिक कामकाज, राजनीति या विदेशी मामलों और भ्रष्टाचार की समीक्षा नहीं की जा रही है. इस श्रृंखला का उद्देश्य यह परखना है कि 1947 के बाद केंद्र सरकार ने जो कानून बनाए या संविधान संशोधन किए उन से समाज सुधार हुआ तो वह क्या है. केवल सरकार चलाने के उद्देश्य से बनाए गए किसी कानून की समीक्षा नहीं की जा रही है, इस में वे कानून हैं जिनका जनता और समाज पर व्यापक असर पड़ा.
विकास के कार्य हर सरकार के कार्यकाल में होते हैं. सरकार का दायित्व होता है समाज के हित के काम करना. इस के लिए कानून बनाना. सरकार कई तरह के कानून बनाती है पर ज्यादा कानून सरकार टैक्स और राजस्व जमा करने के लिए बनाती है. इस के लिए सरकार जमीन जायदाद के कानून बनाती है, सेल टैक्स, आय कर, कंपनी कर आदि के कानून बनाती है. इन्हें देने वाले सरकार के चुंगल से न निकलें, इस के लिए वह नियमकायदे बनाती है. टैक्स वसूलना जरूरी है ताकि सरकार उस का सही उपयोग कर के देश में अमनचैन कायम रखने के साथ देशवासियों को सुरक्षित वातावरण मुहैया करा सकें. अपराध कानून इसलिए बनाए जाते हैं ताकि सरकार के संचालन में अव्यवस्था आड़े न आए.
कानून बनाने का काम संसद और विधानसभाओं का है और सरकारी विभाग कानूनों को अपने अनुसार ढालते हुए लागू करते हैं. चूंकि विधानसभाओं व संसद के पास कानून बनाने का संवैधानिक अधिकार है, कुछ कानून ऐसे बन जाते हैं जिन से समाज में परिवर्तन आ जाते हैं. पिछली किस्तों में आप ने इस बारे में पहले 3 प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के बारे में पढ़ा था.
1984 में इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद उन के बड़े बेटे राजीव गांधी को कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुना. राजीव गांधी को राजनीति का अनुभव नहीं था, न ही उन की इस ओर खास रुचि थी. वे इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे और विदेशी इटैलियन मिस सोनिया से विवाह कर के खुश थे. वर्ष 1984 में 414 सीटें पाने के बाद उन का उत्तरदायित्व बढ़ गया और उन के पास वे मामले आने लगे जो शासन के मूलभूत कार्य- टैक्स जमा करने और उसे बरबाद करने- से अलग थे.
Bu hikaye Sarita dergisinin October Second 2024 sayısından alınmıştır.
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एक गलती ले डूबी इन ऐक्टर्स को
फिल्म कलाकारों का पूरा कैरियर उन की इमेज पर टिका होता है. दर्शक उन्हें इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें वे अपना आइकन मानने लग जाते हैं मगर जहां रियल लाइफ में इस इमेज पर डैंट पड़ता है वहां वे अपने कैरियर से हाथ धो बैठते हैं.
शादी से पहले खुल कर करें बात
पतिपत्नी में किसी तरह का झगड़ा हो हीन, इस के लिए शादी के बंधन में बंधने से पहले दोनों पार्टनर्स हर विषय पर खुल कर बात करें चाहे अरेंज मैरिज हो रही हो या हो लव मैरिज. वे विषय क्या हैं और बातें कैसे व कहां करें, जानें आप भी.
सुनें दिल की धड़कन
सांस लेने में मुश्किल, छाती में दर्द या बेचैनी महसूस हो, तो फौरन कार्डियोलोजिस्ट से हृदय की जांच करानी चाहिए क्योंकि शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करने से स्थिति गंभीर हो सकती है.
जब ससुर लेता हो बहू का पक्ष
जिन मातापिता के पास सिर्फ बेटे ही होते हैं वे घर में बहू के आने के बाद बहुत खुश होते हैं. बहू में वे बेटी की कमी को पूरा करना चाहते हैं. ऐसे में ससुर के साथ बहू के रिश्ते बहुत अच्छे हो जाते हैं क्योंकि लड़कियां बाप की ज्यादा लाड़ली होती हैं.
डिंक कपल्स जीवन के अंतिम पड़ाव में अकेलेपन की खाई
आजकल शादीशुदा युवाओं की लाइफस्टाइल में डिंक कपल्स का चलन बढ़ गया है. इस में दोनों कमा कर आज में जीते हैं पर बच्चे, परिवार और बिना जिम्मेदारियों के साथ. यह चलन खतरनाक भी हो सकता है.
प्रसाद पर फसाद
प्रसाद में मांसमछली वगैरह की मिलावट की अफवाह के के बाद भी तिरुपति के मंदिर में भक्त लड्डू धड़ल्ले से चढ़ा रहे हैं. इस से जाहिर होता है कि यह आस्था का नहीं बल्कि धार्मिक और राजनीतिक दुकानदारी का मसला है.
आरक्षण के अंदर आरक्षण कितना भयावह?
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में वर्गीकरण को मंजूरी दे दी है, जिस के तहत सरकारों को अब एससी और एसटी आरक्षण के भीतर भी आरक्षण देने की छूट होगी. इस फैसले ने आरक्षण की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. इस से जाति आधारित आरक्षण की मांग और भी जटिल हो जाएगी, जिस से देश में नई राजनीतिक बहस शुरू हो सकती है.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार के कार्यकाल के दौरान बनाए गए कानूनों में 2-3 ने ही सामाजिक परिदृश्य को बदला. राजीव गांधी को सामाजिक मामलों की ज्यादा चिंता नहीं थी, यह साफ है.
सांपसीढ़ी की तरह है धर्म और धर्मनिरपेक्षता की जंग
हरियाणा और जम्मूकश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि धर्म और धर्मनिरपेक्षता के बीच जंग आसान नहीं है. दोनों के बीच सांपसीढ़ी का खेल चलता रहता है.
क्यों फीकी हो रही फिल्मी और आम लोगों की दीवाली
फिल्मों की दीवाली अब पहले जैसी नहीं रही. दीवाली का त्योहार अब बड़े बजट की फिल्मों के लिए कलैक्शन का दिन भी नहीं रहा. इस मौके पर फिल्में आती तो हैं लेकिन बुरी तरह पिट जाती हैं. फिल्मी हस्तियों व आम लोगों के लिए दीवाली फीकी होती जा रही है.