सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल में एक अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट को 2 बड़े सवालों पर फैसला करना था. सब से पहले, क्या कुछ समूहों के लोगों, जिन्हें मदद की जरूरत है (जिन्हें आरक्षित जातियां कहा जाता है), को छोटे समूहों में विभाजित किया जा सकता है ? दूसरे, एक पुराने फैसले के बारे में जिस में कहा गया था कि सभी समूह एकजैसे हैं और इन्हें विभाजित नहीं किया जाना चाहिए,
न्यायाधीशों ने फैसला किया कि आरक्षित जातियों के भीतर छोटे समूह बनाना ठीक है. इस का उद्देश्य उन लोगों को विशेष मदद देना है जिन्हें एससी (अनुसूचित जाति) और एसटी (अनुसूचित जनजाति) नामक समूहों के भीतर भी इस की ज्यादा जरूरत है.
एक जज ने बताया कि जिस तरह ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए क्रीमी लेयर का नियम है, जिस के अनुसार अगर उस समूह के कुछ लोग वाकई अच्छा कर रहे हैं तो उन्हें अतिरिक्त मदद नहीं मिल सकती, वही नियम एससी और एसटी समूहों पर भी लागू होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की यह बैंच ई वी चिन्नैया और आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े एक मामले के बारे में 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए पहले के फैसले सहमत नहीं हैं जिस में कहा गया था कि कुछ समूहों (जैसे एससी और एसटी) को दी जाने वाली विशेष सहायता को विभाजित करने की अनुमति नहीं है. सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस मिश्रा की इस बैंच ने अपना निर्णय लेने में मदद के लिए इतिहास को देखा.
इन जस्टिस ने समझाया कि अनुसूचित जाति समूह के सभी लोग एकजैसे नहीं हैं. उन्होंने कहा कि संविधान में निष्पक्षता के नियमों को तोड़े बिना इस बड़े समूह के भीतर छोटे समूह बनाना ठीक है. साथ ही, संविधान सरकार को इन छोटे समूहों को बनाने से नहीं रोकता है. बैंच के एक जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि सरकार का काम उन लोगों की मदद करना है जो उतने समृद्ध नहीं हैं या दूसरों की तुलना में अधिक संघर्ष कर रहे हैं. राज्य अनुसूचित जातियों और जनजातियों जैसे कुछ समूहों को उन की जरूरत के हिसाब से छोटे समूहों में विभाजित कर सकते हैं. इस का मतलब है कि इन में से कुछ छोटे समूहों को विशेष लाभ या सहायता मिल सकती है. लेकिन यह फैसला एक नई बहस को जन्म देता है जो भविष्य में राजनीति को बदल सकता है.
संविधान के कुछ महत्त्पूर्ण अनुच्छेद
Bu hikaye Sarita dergisinin October Second 2024 sayısından alınmıştır.
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