सहयोगात्मक संघवाद का नायाब नमूना समझे जाने वाली अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अस्तित्व में आए छह वर्ष पूरे हो चुके हैं। जीएसटी से सरकारी खजाने में हरेक महीने कम से कम 1.5 लाख करोड़ रुपये आ रहे हैं। यह एक नया एवं निरंतर जारी रहने वाला सिलसिला लगने लगा है। जब 1 जुलाई, 2017 को यह नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था लागू हुई थी तो पहले 20 महीने के दौरान सरकारी खजाने में राजस्व के रूप में प्रत्येक महीने 1 लाख करोड़ रुपये से कम रकम आ रही थी।
जीएसटी से प्रत्येक महीने तब 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक राजस्व मिल रहा है जबकि सरकार के लिए राजस्व के बड़े स्रोत पेट्रोलियम, अल्कोहल, रियल एस्टेट का एक हिस्सा और बिजली जीएसटी व्यवस्था से अब भी बाहर हैं। जीएसटी का सफर और इसके असर केवल इस कर प्रणाली तक सीमित नहीं रहे हैं। प्रत्यक्ष कर अधिकारियों के साथ आंकड़ों के स्थानांतरण और कारोबार पर लागत कम होने से आय और निगमित करों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। जीएसटी और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात कर राजस्व में तुलना करने का एक बेहतर जरिया हो सकता है। यह अनुपात बढ़ा जरूर है मगर इसकी रफ्तार उतनी तेज नहीं रही है। वर्ष 2017-18 में जीएसटी लागू होने के बाद यह अनुपात 6 प्रतिशत से अधिक रहा है। कोविड महामारी से प्रभावित 2020-21 में केवल यह अनुपात 6 प्रतिशत से कम रहा। पिछले कुछ वर्षों के दौरान जीएसटी बॉयंसी 1 से अधिक रहा है जो इस बात का संकेत है कि जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी नॉमिनल जीडीपी की तुलना में अधिक रही है।
Bu hikaye Business Standard - Hindi dergisinin July 03, 2023 sayısından alınmıştır.
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