कोटा मेडिकल और इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए तैयारी के लिए देश के सबसे मशहूर ठिकानों में शामिल है और इस शोहरत की वजह से ही शहर की तंग गलियां अब इस भीड़ की आदी हो चुकी हैं। हर साल 2 लाख से ज्यादा लड़के-लड़कियां इस शहर का रुख करते हैं, जिनमें ज्यादातर 11वीं या 12वीं के छात्र होते हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 240 किलोमीटर दक्षिण में बसे कोटा में ये सभी एक ही सपना लेकर आते हैं... इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास करना।
इन दोनों की तैयारी के लिए कोटा को सबसे बड़ा अखाड़ा माना जाता है मगर इस साल यहां आने वाले छात्रों की संख्या एकाएक कम हो गई है। इससे पूरा शहर ही सकते में आ गया है क्योंकि संस्थानों और छात्रों के दम पर शहर में 5,000 करोड़ रुपये सालाना कारोबार वाली अर्थव्यवस्था चलती है।
संस्थानों और यहां छात्रों की आमद पर नजर रखने वाले बताते हैं कि पिछले साल के मुकाबले इस साल कोचिंग संस्थानों में 30 से 40 फीसदी कम दाखिले हुए हैं। संस्थानों में पढ़ा रहे शिक्षकों से बात करें तो वे इसकी कई वजहें गिनाते हैं। बड़ी वजह कोटा के बाहर कोचिंग सेंटर खुलना है, जिसकी वजह से मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले अपने घरों के करीब रहकर पढ़ाई कर रहे हैं और उन्हें किसी मनोवैज्ञानिक दबाव' से भी नहीं जूझना पड़ रहा है।
कोटा में सबसे बड़े कोचिंग संस्थानों में से एक के शिक्षक ने कहा, 'कई संस्थान अब बढ़ रहे हैं और राजस्थान, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के तमाम शहरों में अपने नए सेंटर खोल रहे हैं। बच्चों को कोटा के बजाय पड़ोस में भेजना मातापिता के लिए ज्यादा आसान है।'
नाम नहीं छापने की शर्त पर वह कहते हैं, 'माता-पिता अपने बच्चों को कोटा भेजने में इसलिए भी हिचक रहे हैं क्योंकि शहर में छात्रों की खुदकुशी ने सभी को फिक्र में डाल दिया है। यहां नहीं आने पर छात्रों का दूसरे शहर में रहने का खर्च भी बच जाता है, जिससे माता-पिता के ऊपर पड़ने वाला आर्थिक बोझ बहुत कम हो जाता है।'
Bu hikaye Business Standard - Hindi dergisinin July 18, 2024 sayısından alınmıştır.
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