उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि किसी की संपत्ति को इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि आपराधिक है अथवा उसे किसी मामले में आरोपी या दोषी पाया गया है। हाल में चलन में आए 'बुलडोजर न्याय' की तुलना अराजकता की स्थिति से करते हुए अदालत ने देशभर के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए। साथ ही सख्त टिप्पणी करते हुए हिदायत दी, 'अधिकारी जज की भूमिका नहीं निभा सकते।' नई व्यवस्था के अनुसार घर गिराने से पहले प्रभावित व्यक्ति को नोटिस दिया जाएगा और जवाब देने के लिए उसे 15 दिन का वक्त देना होगा। अदालत ने कहा कि संबंधित पक्ष को नोटिस का जवाब देने अथवा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को उपयुक्त मंच पर चुनौती देने के लिए कुछ समय अवश्य देना चाहिए।
सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट कहा कि यदि अधिकारी तय दिशानिर्देशों का पालन नहीं करते हैं तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा और उनके खिलाफ मानहानि की कार्यवाही शुरू की जा सकती है। साथ ही गिराए गए घर या संपत्ति को दोबारा बनाने के लिए रकम संबंधित अधिकारियों से वसूली जाएगी।
Bu hikaye Business Standard - Hindi dergisinin November 14, 2024 sayısından alınmıştır.
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