प्रस्तुत लेखमाला 'कैसे करें सटीक फलादेश?” के अन्तर्गत विगत तीन अंकों से मीन लग्न के अष्टम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के भावगत, राशि-नक्षत्रगत, युति एवं दृष्टिजन्य फलों का सोदाहरण वर्णन किया जा रहा है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में मीन लग्न के अष्टम भाव में शुक्र एवं शनि के शुभाशुभ फलों का सोदाहरण वर्णन किया जा रहा है।
मीन लग्न के अष्टम भाव में स्थित शुक्र के फल
मीन लग्न में शुक्र तृतीयेश एवं अष्टमेश होता है। अष्टमेश का अष्टम भाव में जाना दीर्घायु देता है, परन्तु तृतीयेश के रूप में शुक्र की अष्टम भावगत स्थिति शुभ नहीं कहीं जा सकती। नैसर्गिक रूप से शुक्र की अष्टम भावगत स्थिति मिश्रित फलदायक है, जहाँ एक ओर कॅरिअर, धन आदि में वह शुभाशुभ है, तो वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य एवं रिश्तों की दृष्टि से विपरीत फलदायक भी है। यहाँ स्थित शुक्र जातक को हार्मोन, अन्त: स्रावीग्रन्थि, मधुमेह, थॉयराइड, मूत्र उत्सर्जन तन्त्र एवं प्रजनन तन्त्र से सम्बन्धित रोगों के प्रति संवेदनशील बनाता है। यहाँ स्थित शुक्र वैवाहिक सुख में कमी का कारण भी बनता है। सप्तम भाव का नैसर्गिक कारक शुक्र यदि त्रिक भाव अष्टम में स्थित हो, तो काम एवं प्रजनन शक्ति एवं सन्तान सुख में कमी तथा दाम्पत्य सुख में परेशानी देता है। शुक्र यदि पीड़ित या मंगल आदि से प्रभावित हो, तो विवाहेतर सम्बन्धों की भी आशंका रहती है। तृतीयेश के रूप में शुक्र की शुक्र अष्टम भावस्थ स्थिति भ्रातृसुख में कमी करती है, वहीं जातक के पराक्रम, उद्यमशीलता एवं नवोन्वेषी से सम्बन्धित क्षमता में कमी इत्यादि फल भी प्राप्त होते हैं।
Bu hikaye Jyotish Sagar dergisinin September 2023 sayısından alınmıştır.
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।